रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र (CGSCCC) ने नवा रायपुर अटल नगर स्थित अरण्य भवन में “सतत आवास और कृषि क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (APCC) के क्रियान्वयन” पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम के दौरान एयर कंडीशनर तापमान विनियमन पर एक पोस्टर और जलवायु परिवर्तन से संबंधित 100 सफलता कहानियों पर आधारित पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
कार्यशाला का उद्घाटन पद्मश्री उमा शंकर पांडे ने किया, जिन्होंने जल संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जल संकट आज विश्व की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। उन्होंने इस बात को दोहराया कि “पानी बनाया नहीं जा सकता, केवल बचाया जा सकता है” और जल बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। पांडे ने छत्तीसगढ़ में जल संरक्षण के लिए संग्रहालय और विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा, साथ ही “पानी की पाठशाला” जैसी पहल शुरू करने का सुझाव दिया, ताकि जल के महत्व और संरक्षण की तकनीकों को लोगों तक पहुंचाया जा सके।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल प्रमुख वी. श्रीनिवास राव ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में समुदाय की भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण अनुकूल आदतें अपनाने के लिए हरित ऊर्जा, हरित भवन और हरित इस्पात जैसे नवाचारी उपायों को अपनाया जाना चाहिए। राव ने प्लास्टिक के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्थानीय स्तर पर रोकने के लिए जागरूकता फैलाने की बात की।
कार्यशाला में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण कुमार पांडे ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य सतत आवास और कृषि क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावी समाधान खोजना और APCC के तहत बनाई गई रणनीतियों पर चर्चा करना है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र राज्य की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रहा है।
इस कार्यशाला में कई प्रमुख विशेषज्ञों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया, जिनमें आबकारी विभाग की सचिव आर. संगीता, आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर डॉ. रघु मर्तुगुडे, तमिलनाडु WTC के पूर्व निदेशक डॉ. पन्नीरसेल्वम, रायपुर नगर निगम आयुक्त अविनाश मिश्रा, बेंगलुरु के वास्तुकार डॉ. सुजीत कुमार, और अंबिकापुर नगर निगम के स्वच्छ भारत मिशन के नोडल अधिकारी रितेश सैनी प्रमुख थे। इन विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर अपने विचार साझा किए।
कार्यशाला में दो तकनीकी सत्र और दो पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं, जिनमें पर्यावरणविदों, अधिकारियों और विभिन्न क्षेत्रीय प्रतिनिधियों ने अपने अनुभवों और विचारों का आदान-प्रदान किया।