गया 11 अप्रैल 2022 : आज हम आपको बिहार के गया जिले के एक ऐसे छोटे से गांव से रूबरू करवाएंगे जो बहुत बड़ी कामयाबी हासिल किया है, जिसे विलेज ऑफ़ आईआईटियंस कहा जाता है। बिहार का ये ‘पटवा टोली’ गांव उन लोगों के लिए किसी आईने की तरह है, जिन्हें इस राज्य की प्रतिभा को लेकर किसी तरह का शक है।
कभी ये गांव बुनकरी के लिए जाना जाता था। लेकिन वो कहते हैं ना जिसके अंदर कुछ कर दिखाने का जज्बा हो वो बिना किसी सुख-सुविधा के भी हर कठिनाई को दूर करते हुए सफल हो ही जाता है। पिछड़ा होने के बावजूद पिछले 24 सालों से इस गांव के लड़के कुछ ऐसा कमाल कर रहे हैं, जो संभवतः देश के दूसरे गांवों में देखने को नहीं मिलता। यहां से हर साल दर्जनों छात्र IITऔर NIT के लिए चुने जाते हैं। खास बात ये है कि सबसे अधिक लूम कारीगर के बच्चे ने सफलता हासिल कर नाम रोशन किया है। यहां के बच्चें अपनी मेहनत और काबिलियत से देश ही नहीं विदेश में भी कार्यरत है और अपनी सफलता से अपने गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।
पटवा टोली गांव को पहले ‘मैनचेस्टर ऑफ़ बिहार’ के नाम से जाना जाता था। यहां के हर घर और हर गली में पावरलूम हुआ करता था। पहले पटवाटोली लूम से चादर, तौलिया, गमछा बनाने के लिये प्रसिद्ध था लेकिन अब यह गाँव आईआईटियंस के लिये जाना जाता है। इस गांव में हर घर में प्प्ज् इंजीनियर है।
इस गांव में एक लाइब्रेरी भी है, जो गांव के लोगों द्वारा हीं की गई आर्थिक सहयोग से चलता है। साल 1996 में वहां के बच्चों ने आईआईटी में प्रवेश की शुरुआत की, उसके बाद से उस गांव के बच्चों में एक अलग ही प्रतिभा उभरी और सभी बच्चे कड़ी मेहनत करने लगे। नतीजा वहां के बच्चे हर साल आईआईटी में सिलेक्ट होने लगे।
1990 के दौर में जब पटवा टोली के अगल बगल आर्थिक मंदी का दौर आया तो पटवाटोली के बुनकर अपने बच्चों की पढ़ाई की तरफ ध्यान देने लगे। तब से लेकर आज तक अभाव में रहने वाले पटवाटोली गांव के बच्चे लगातार अपने इलाके का नाम रौशन कर रहे हैं।
बुनकरों के गांव पटवाटोली में सोशल इंजीनियरिंग की शुरुआत 1992 से हुई थी। उस वक्त जीतेन्द्र प्रसाद ने सबसे पहले आईआईटी पास किया था। उसके बाद से ही हर वर्ष दर्जनों छात्र आईआईटी पास करने का सिलसिला शुरू हुआ। जितेंद्र प्रसाद साल 2000 में नौकरी करने अमेरिका चले गए लेकिन उनकी कामयाबी ने पटवाटोली के छात्रों में इंजीनियर बनने की ललक पैदा कर दी।
पटवाटोली के पूर्व इंजीनियरिंग छात्रों ने मिलकर नवप्रयास नाम से एक संस्था बनाई है जो IIT की परीक्षा देने वाले छात्रों को पढ़ाई में मदद करती है। पटवाटोली गांव बुनकरों की आबादी के लिए जाना जाता है। लेकिन यहां की 10 हज़ार की आबादी में से अब तक 300 से ज्यादा इंजीनियर निकल चुके हैं।