संतोष पुरी जी महाराज अपने शिविर में धूनी के पास बैठे थे, जब एक दंपती अपने तीन महीने के बच्चे को गोद में लेकर उनके पास आया। उन्होंने अपने बच्चे को पहले महाराज के चरणों में रखा और फिर उसे धूनी के पास अर्पित कर दिया। संतोष पुरी महाराज ने बच्चे के माथे पर तिलक लगाया और माता-पिता को प्रसाद देकर विदा किया। उस दिन महाराज ने बच्चे का नाम ‘श्रवण पुरी’ रखा।
अब श्रवण पुरी 3 साल के हो चुके हैं और इस समय वह अपने पहले महाकुंभ में शामिल होने के लिए अपने गुरु भाई अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज के साथ कुंभ क्षेत्र में आए हैं। अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज का पूरा दिन प्रभु भक्ति और श्रवण पुरी की परवरिश में व्यतीत होता है। श्रवण पुरी की मासूमियत को देखकर भक्तों की भीड़ उनके शिविर के सामने जमा हो जाती है। उनका प्यारा चेहरा देख भक्त मिलने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
अष्टकौशल महंत ने बताया कि जब श्रवण पुरी केवल 3 महीने के थे, तब उनके माता-पिता उन्हें धूनी (अग्निकुंड) के पास छोड़ गए थे। श्रद्धालु अक्सर संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर अपनी श्रद्धा के अनुसार कुछ अर्पित करते हैं। इस प्रक्रिया में कई बार माता-पिता अपने बच्चों को अर्पित करते हैं। अष्टकौशल महंत ने यह भी बताया कि उनके पास एक और डेढ़ साल का बच्चा है, जिसे भी धूनी पर अर्पित किया गया था।
बच्चे के लालन-पालन के बारे में अष्टकौशल महंत ने बताया कि शुरुआत में थोड़ी दिक्कतें आईं, लेकिन अब भक्तों के सहयोग से वे श्रवण पुरी का पालन-पोषण सहजता से कर पा रहे हैं। श्रवण पुरी रोज़ सुबह 5 बजे उठते हैं, स्नान करते हैं और आधे घंटे तक गुरु और प्रभु की भक्ति करते हैं। इसके बाद वे दिनभर खेलते रहते हैं।
श्रवण पुरी की शिक्षा भी शुरू हो चुकी है। वह स्कूल जाते हैं और आश्रम में धार्मिक शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं। महाराज जी ने आदेश दिया है कि उन्हें संस्कृत की शिक्षा दी जाए और जल्द ही उन्हें संस्कृत महाविद्यालय में दाखिला दिलवाया जाएगा, जहां वे सनातन परंपरा का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
अष्टकौशल महंत ने बताया कि श्रवण पुरी में साधुओं जैसे चमत्कारी लक्षण दिखाई दे रहे हैं। उनका ध्यान पूजा और जप-तप में भी लगा रहता है और भक्तों का मानना है कि वे भगवान का रूप हैं। तीन साल के इस बच्चे को चॉकलेट या टॉफी के बजाय फल खाना पसंद है और उसे अपने गुरुओं और गुरु भाइयों की पहचान है।
श्रवण पुरी के माता-पिता के बारे में अष्टकौशल महंत ने बताया कि वे एक संपन्न परिवार से हैं, जिनके पास गाड़ियाँ और करोड़ों की संपत्ति है। हालांकि, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने इस परंपरा को उचित नहीं माना है। उनका कहना है कि अक्सर गरीब परिवारों के बच्चे इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, जबकि संपन्न परिवारों के बच्चे इससे दूर रहते हैं।
रविंद्र पुरी ने कहा कि जब बच्चे बड़े होते हैं और उनकी इच्छानुसार वे साधु बनना चाहते हैं, तभी उन्हें दीक्षा दी जाती है। वे बच्चों को मंदिर में अर्पित करने की प्रथा का विरोध करते हैं, लेकिन यह माता-पिता का व्यक्तिगत निर्णय होता है, और वे इसे रोकने का कोई अधिकार नहीं रखते।