हलचल…कड़े और बड़े फैसले लेने वाली विष्णु सरकार , भूपेश और देवेन्द्र के बीच खिंची तलवारें…

cm vishnudev

कड़े और बड़े फैसले लेने वाली विष्णु सरकार

विष्णु सरकार के लिए सामान्य तौर पर जो बात कही जाने लगी थी, वह मिथ्या साबित होते दिख रही है। दरअसल में गाहे-बगाहे यह कहा जाने लगा था कि विष्णु सरकार अब तक की सबसे धीमी सरकार है। लेकिन यदि अब तक के राजनीतिक और प्रशासनिक फैसलों पर नजर डाला जाए तो वास्तव में विष्णु सरकार अब तक की सबसे कड़े और बड़े फैसले लेने वाली सरकार है। राज्य में भाजपा की सरकार बनते ही सीएम विष्णुदेव के नेतृत्व में कुछ माह में ही चुनावी वादे यानि की मोदी की गारंटी को पूरा कर दिया गया। वहीं पिछले 15 साल में भाजपा और रमन सिंह सरकार जो राजनीतिक निर्णय नहीं ले सके उसे विष्णु सरकार ने एक झटके में कर दिखाया। जी हां हम बात कर रहे हैं राज्य के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल की। बृजमोहन अग्रवाल और डॉ. रमन सिंह के बीच राजनीतिक अदावत जगजाहिर है, फिर भी डॉ. रमन सिंह के न चाहते हुए भी उनके तीनों कार्यकाल में बृजमोहन अग्रवाल केबिनेट मंत्री बने रहे। यहां तक की बृजमोहन अग्रवाल राज्य में पैररल रुप से सरकार चलाते रहे फिर भी रमन और भाजपा कुछ न कर सके। लेकिन विष्णुदेव ने एक झटके में फैसला लेते हुए बृजमोहन को मंत्रीमंडल से तो दूर राज्य की राजनीति से ही रवाना कर दिया। निश्चित ही यह अब तक का सबसे बड़ा और कड़ा राजनीतिक फैसला है। बृजमोहन सार्वजनिक रुप से चिल्लाते रहे कि सीएम चाहेंगे तो मैं अभी 6 माह तक मंत्री रह सकता हूं, लेकिन विष्णुदेव ने एक नहीं सुनी नतीजन बृजमोहन अग्रवाल को मंत्रीपद से इस्तीफा देना पड़ा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि धीमी नहीं, बल्कि कड़े और बड़े राजनीतिक फैसले लेने वाली यह विष्णु सरकार है।

भूपेश और देवेन्द्र के बीच खिंची तलवारें

प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहा है। दरअसल में पीसीसी चीफ को लेकर जमकर खीचतान चालू है। कभी भूपेश के चहेते रहे देवेन्द्र यादव इन दिनों अलग-थलग पड़े हुए हैं। कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव को पीसीसी चीफ बनाने के पक्षधर हैं, वहीं देवेन्द्र भी पीसीसी चीफ बनने के लिए जमकर लाबिंग कर रहे हैं। लेकिन पूर्व सीएम भूपेश बघेल इस निर्णय के खिलाफ हैं। कुल मिलाकार पीसीसी चीफ को लेकर भूपेश और देवेन्द्र के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। कहा जा रहा है कि वर्तमान पीसीसी चीफ दीपक बैज का हटना लगभग तय हो चुका है। ऐसे में राहुल गांधी किसी आक्रामक नेता को पीसीसी चीफ की कमान सौंपना चाहते हैं। जिसमें देवेन्द्र यादव का नाम सबसे आगे चल रहा है। हालांकि इस रेस में पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव और खरसिया विधायक उमेश पटेल भी शामिल हैं।

संसदीय ज्ञाताओं की परवाह नहीं

हमने पूर्व में ही लिखा है कि विष्णु सरकार कड़े और बड़े राजनीतिक फैसले लेने वाली सरकार बन चुकी है। दरअसल में प्रेमप्रकाश पाण्डे, शिवरतन शर्मा, बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर को राज्य में संसदीय मामलों का ज्ञाता माना जाता है। लेकिन अब तक के राजनीतिक फैसलों पर गौर किया जाए तो विष्णु सरकार ने यह तय कर लिया कि अब हम में से ही कोई (वर्तमान मंत्रियों में से कोई भी) संसदीय मामलों के दायित्व का निर्वहन करेगा। प्रेम प्रकाश पांडे और शिवरतन शर्मा चुनाव हार गए। बृजमोहन अग्रवाल को राज्य से केन्द्र भेज दिया गया और अजय चन्द्राकर के सदन में मौजूद रहने के बाद भी जरुरत नहीं महशूस की गई? 22 जुलाई से विधानसभा का सत्र है उससे पहले लग रहा था कि विष्णु सरकार मंत्रीमंडल में विस्तार करते हुए नया संसदीय मंत्री दे सकती है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ विष्णु सरकार ने मंत्री केदार कश्यप को संसदीय कार्यमंत्री का प्रभार सौंप दिया। अजय चंन्द्राकर को बड़ी आस थी, लेकिन उन्हें एक बार फिर निराशा हांथ लगी। बृजमोहन अग्रवाल को राज्य की राजनीति से दूर करने के बाद विष्णु सरकार का यह दूसरा बड़ा और कड़ा राजनीतिक फैसला है।

सीएम के दिल्ली प्रवास के पहले…?

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जैसे ही दिल्ली रवाना होते हैं, मंत्रीमण्डल के विस्तार की चर्चाएं होना इन दिनों आम हो चुकी हैं। खैर इस बार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की गृहमंत्री अमित शाह और विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ में महती भूमिका निभाने वाले मनसुख भाई मंडाविया से मुलाकात हुई। जो राजनीतिक रुप से कई मायने में अहम मानी जा रही है। गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली रवाना होने से पहले सीएम हाउस में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से किन नेताओं की मुलाकात हुई है? दरअसल में सीएम साय के दिल्ली रवाना होने से पहले बस्तर की एक आदिवासी महिला नेत्री की मुलाकात हुई। वहीं दुर्ग सम्भाग से दो ओबीसी विधायकों की भी सीएम साय से गुफ्तगू हुई। दुर्ग सम्भाग के यह दोनो विधायक पहली बार निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे हैं। जिसमें एक विधायक की पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी हुई है तो दूसरे विधायक ओबीसी में संख्या बहुल्य समाज से आते हैं। माना जा रहा है कि इनमे से किसी एक का साय केबिनेट में मंत्री बनना लगभग तय है।

पर्दा कब तक ?

शिवनाथ नहीं का पानी जहरीला होने के कारण मछली सहित लाखों की संख्या में जल जीवों की मौत हो गई। वहीं कहा तो यह भी जा रहा है कि नदी का पानी पीने से 15 से अधिक गायों की भी मौत हो गई। दरअसल में एक शराब फैक्ट्री का दूषित पानी नदी में बहाया जा रहा है, इसके लिए कुछ माह पहले स्थानीय एसडीएम ने शराब फैक्ट्री के प्रबंधन को नोटिस भी जारी किया था। हलांकि मामले में जांच टीम गठित की गई है, जांच रिपोर्ट समाने आने के बाद ही सत्यता का खुलासा होगा। लेकिन नदी में हुई जीवों की मौतों को झुठलाया तो नहीं जा सकता, नष्ट हुई जैवविविधता को बचाया तो नहीं जा सका। सुप्रीप कोर्ट के गाइडलाइन के अनुसार बारिस के मौसम में डिस्टलरी का पानी नदी में न जाए इसके लिए पर्यावरण विभाग द्वारा प्रतिवर्ष ड्यूटी लगाई जाती है। विभाग द्वारा सतत निगरानी की जाती है, उसके बाद भी डिस्टलरी का दूषित पानी यदि नदी में जा रहा है तो इसके लिए दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? आखिर कब तक पर्दा डाला जाएगा?

फिर निकला जिन्न

राज्य में एक ऐसा घोटाला हुआ जिसमें से सिर्फ एक अधिकारी से रिकव्हरी की गई, वो भी आधी राशि, बाकी 11 अधिकारियों को विभागीय जांच के बाद दोषमुक्त कर दिया गया। 59,32,670 रुपये की 50 प्रतिशत राशि यानि की 29,66,340 रुपये ही वसूल किए गए। अब इस मामले में लोकलेखा समिति द्वारा लगातार शासन से जवाब मांगा जा रहा है। लेकिन समिति के पत्र को कचड़े के डब्बे में डाल दिया जा रहा है। दरअसल में 2.29 करोड़ के कपटपूर्ण व्यय में शामिल 14 अधिकारी और कर्मचारियों में से एकमात्र कर्मचारी से गबन की राशि वसूल की गई है, वो भी आधी। अब लोकलेखा समिति द्वारा बार-बार विभाग प्रमुख और विभाग के अपर मुख्य सचिव को पत्र भेजकर जबाव मांगा जा रहा है, लेकिन शासन- प्रशासन लोक लेखा समिति को भी जबाव देने से बच रहे हैं। दरअसल में लेखापरीक्षा आपत्ति के उत्तर में शासन द्वारा 2.29 करोड़ रुपये के कपटपूर्ण व्यय को स्वीकार किया गया है, लेकिन इसके विरुद्ध विभाग द्वारा मात्र 29,66,340 रुपये ही वसूल किए गए हैं। यहीं नहीं इस प्रकरण में समस्त अधिकारी/ कमार्चारियों को दोषमुक्त भी कर दिया गया है। जिसमें समिति का कहना है कि शासन को हुई उपरोक्त हानि का जिम्मेदार कौन है? इस हानि की भरपाई कैसे की जाएगी? इस प्रकरण को लेकर छत्तीसगढ विधानसभा द्वारा लगातार जबाव मांगा जा रहा है, लेकिन जिम्मेदार इससे बचते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकार इस प्रकरण का जिन्न फिर से बाहर निकल आया है।

मंत्री जी डंप कर रहे फाइलें

लोकसभा चुनाव के पहले राडार में चल रहे राज्य के एक मंत्री फिर अपने अनुभव का उपयोग करना चालू कर दिए हैं। दरअसल में इनके पास सभी क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव है। कहा जा रहा है कि मंत्री जी अपने विभाग की फाइलों को डंप कर देते हैं। जब तक उसकी कोई पूछ परख न हो तक तक फाइल को रोक दिया जाता है। खबर तो यह भी है कि एक मामले में 50 फीसदी काम होने के बाद भी रोक दिया गया। फाइलें रुकने से सम्बधित आदमी, ठेकेदार मिलने तो पहुंचता ही है। खैर इतने विभागों की जिम्मेदारी सम्भाल चुके अनुभवी मंत्री जी फाइलों को क्यों रोक रहें है? यह तो स्वयं वही जानेंगे। लेकिन इसकी चर्चा अब दूर-दूर तक होने लगी है।

कब तक और कहां तक

बजट सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने 17 चौसिंगाओं की मौत का मामला उठाया था। विषय की गंभीरता को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन ंिसंह ने वहां पर ठीक-ठाक डॉक्टर की व्यवस्था करने को कहा था। लेकिन व्यवस्था तो दूर जंगल सफारी में कार्यरत एकमात्र महिला डॉक्टर की छुट्टी कर दी गई। आचार संहिता के दौरान बिना छुट्टी लिए डॉ. राकेश वर्मा बाहर घूमते रहे, यहां जगंल सफारी चौसिंगा विहीन हो गया, लेकिन नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत की मांग के बाद भी उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। खैर यह मामला यहीं नहीं रुकने वाला है, कांग्रेस की एक महिला विधायक द्वारा इस विषय पर ध्यानाकर्षण लगाया गया है। दरअसल में पशुुपालन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आये डॉ. राकेश वर्मा को वन विभाग में सहायक वन संरक्षक के पद पर स्थायी नियुक्ति देकर वरीयता सूची में स्थान दे दिया गया है। अब डॉ. वर्मा के नियुक्ति संबधी जानकारी भी खंगाली जा रही है, साथ ही उन्हें नियुक्त करने वाले अधिकारी पर भी कार्रवाई की मांग की जा रही। यही नहीं 8 करोड़ के गबन मामले में वह जमानत पर रिहा हैं, लेकिन अब तक उन्हें निलंबित तक नहीं किया गया। कुल मिलाकर दलदल में फंसे डॉक्टर साहब को कब तक बचाने की कोशिश की जाएगी।

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