डायबिटीज की बीमारी अब केवल युवाओं और बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही। अब यह शून्य से 14 साल तक के बच्चों में भी तेजी से फैल रही है। डॉक्टरों के मुताबिक, ये बच्चे टाइप-1 डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं, जो एक जन्मजात और जेनेटिक बीमारी है।
इस बीमारी का इलाज इंसुलिन से करना पड़ता है, और बच्चों को जीवनभर इंसुलिन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, उन्हें सांस और गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, टाइप-1 डायबिटीज के लक्षणों में बार-बार प्यास लगना, पेशाब आना, ज्यादा भूख लगना, वजन का अचानक घटना, चिड़चिड़ापन और थकान शामिल हैं। इसके अलावा, शुगर लेवल का बढ़ना बच्चों की आंखों की कमजोरी, किडनी और हार्ट की ब्लड वेसल्स पर भी असर डाल सकता है।
कम उम्र में डायबिटीज के होने से बच्चों की परेशानियां और बढ़ जाती हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और देर से इलाज होने पर यह बीमारी और खतरनाक हो सकती है। कभी-कभी, इन बच्चों को दिन में चार बार भी इंसुलिन लगाने की जरूरत होती है।
जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. निलय मोझरकर ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज जेनेटिक कारणों से होती है, और इससे पेनक्रियाज के बीटा सेल्स खत्म हो जाते हैं, जो इंसुलिन का निर्माण करते हैं। इसका इलाज समय पर न किया जाए तो यह और खतरनाक हो सकता है। इसके अलावा, बदलते लाइफस्टाइल के कारण टाइप-2 और टाइप-3 डायबिटीज के मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
सरकार ने इन बच्चों के इलाज के लिए मुख्यमंत्री बाल मधुमेह सुरक्षा योजना शुरू की है, जिसके तहत बच्चों को जरूरी किट प्रदान की जाती है। इसमें ग्लूकोमीटर, ग्लूकोस्ट्रीप, इंसुलिन जैसी जरूरी चीजें शामिल हैं। इस योजना के तहत 21 साल तक के बच्चे मुफ्त इलाज प्राप्त कर सकते हैं। फिलहाल, रायपुर में 114 बच्चों का इलाज इस योजना के तहत किया जा रहा है।