केंद्रीय शास्त्रीय तमिळ संस्थान, चेन्नई में आयोजित तिरुक्कुरळ अनुवाद विषयक सप्तदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रतिनिधि विद्वान के रूप में साहित्यकार गीता शर्मा सहभागिता की तथा सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के विद्वानों के मध्य छत्तीसगढ़ी भाषा एवं साहित्य स्वरूप की विवेचना करते हुए अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया।
गीता शर्मा ने तमिल वेद के नाम से प्रसिद्ध तिरुक्कुरळ ग्रन्थ के धर्म, अर्थ एवं काम खंडों की वैचारिक मत वर्तमान मानव के लिए तिरुक्कुरळ की उपादेयता को सिद्ध किया। उन्होंने तिरुक्कुरळ में वर्णित ईस, मेघ, दान, इश वंदना के 12 कुरल का चिंतन पर विचार और सत्य ,अहिंसा मध्य पान निषेध पर व्यावहारिक व्याख्या करते हुए उनकी भारतीय साहित्य के तिरुवल्लुवर रचित तिरुक्कुरल साहित्य में भाव साम्यता को उद्घाटित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा एवं उसके साहित्य की विरल विशिष्टताओं की सोदाहरण जानकारी दी।
गीता शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी एक स्वतंत्र, समृद्ध एवं प्राचीन भाषा है, और छत्तीसगढी भाषा पर चल रहे विभिन्न प्रोजेक्ट के बारे में बताया।गीता शर्मा के नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के भाषाई उपक्रम केंद्रीय शास्त्रीय तमिळ संस्थान, चेन्नई की ओर से एक अनुवाद परियोजना स्वीकृत हुई है, जिसमें वे दक्षिण के कबीर नाम से ख्यातनाम संत तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरुक्कुरळ’ का छत्तीसगढी में काव्यानुवाद कर रहे हैं। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में रचित वृहद ग्रन्थ ‘तिरुक्कुरळ’ में 133 अध्याय है। गीता शर्मा ने बताया कि देश के यशश्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने आह्वान किया था कि इस ग्रन्थ का देश-विदेश की सभी भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए, उसी से प्रेरित होकर उन्होंने इस परियोजना हेतु आवेदन किया और खुशी है कि ऐसा बड़ा एवं गौरव वाला काम उनके नाम स्वीकृत हुआ है। इस अनुवाद के माध्यम से छत्तीसगढी भाषा की सामर्थ्य से न केवल भारत वरन विश्व स्तर के लोग परिचित हो पाएंगे। इस तरह से द्विभाषा का सेवा का अवसर केन्द्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान ने दिया उसके लिए डायरेक्टर डा आर . चंद्रशेखरन जी , अनुवादक और भाषा विद एम गोविंद राजन जी और कोर्डिनेटर अवगुण मुथु जी का हार्दिक आभार प्रकट किया।