भिलाई से 26 किमी दूर अछोटी गांव में एक अनोखा स्कूल है, जहां बच्चों को शिक्षक नहीं, बल्कि उनके माता-पिता ही पढ़ाते हैं। इस स्कूल में कुल 28 शिक्षक हैं, जिनमें से 14 नियमित शिक्षक हैं और 14 विषयवार सप्ताह में 3-4 दिन कक्षाएं लेते हैं। इन शिक्षकों में 3 आईआईटीयन, एक एमबीबीएस डॉक्टर, एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और एक सीए शामिल हैं। इनमें से कोई भी शिक्षक वेतन नहीं लेता, बल्कि स्कूल के संचालन के लिए स्वेच्छा से दान देते हैं।
यह स्कूल 2016 में शुरू हुआ था और अब इसमें पहली से दसवीं तक 168 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूल को 2018 में मान्यता मिली और पिछले साल 10वीं के परिणाम में 100% सफलता मिली। 5 बच्चों ने 90% से अधिक अंक प्राप्त किए।
शिक्षा के साथ जीवन विद्या और मानवीय मूल्य
स्कूल की प्रभारी, सुचित्रा श्रीवास्तव बताती हैं कि इस स्कूल में बच्चों को सिर्फ अकादमिक शिक्षा ही नहीं दी जाती, बल्कि उन्हें जीवन विद्या और मानवीय मूल्य भी सिखाए जाते हैं। यहां बच्चे एक दूसरे को बहनजी या भैयाजी कहकर संबोधित करते हैं और शिक्षक भी आपस में एक दूसरे को बहनजी या भाई साहब कहते हैं। बच्चों को शारीरिक फिटनेस के लिए स्पोर्ट्स और पीटी भी सिखाई जाती है।
सहयोग से चलने वाला स्कूल
स्कूल का संचालन अभ्युदय संस्थान से जुड़े लगभग 50 परिवार मिलकर करते हैं। इन परिवारों के सदस्य बिना किसी आर्थिक लाभ या वेतन के स्वेच्छा से स्कूल के संचालन में योगदान देते हैं। इन अभिभावकों का मानना है कि इस प्रकार के स्कूल बच्चों को परिवार का महत्व समझाते हैं और उन्हें मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ हुनरमंद भी बनाते हैं। उनका उद्देश्य है कि बच्चों को सही शिक्षा के साथ ही परिवार और समाज की अच्छाईयों का अनुभव भी हो।
स्किल डेवलपमेंट और स्वरोजगार की ट्रेनिंग
इस स्कूल में बच्चों को सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि स्वरोजगार के लिए भी तैयार किया जाता है। उन्हें वुडन आर्ट, सलाद मेकिंग, कृषि, डेयरी और गौ पालन जैसी विभिन्न विधाओं का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, ताकि वे भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें।
यह स्कूल एक नजीर पेश कर रहा है, जहां शिक्षा और संस्कार को एक साथ जोड़ा जा रहा है, और बच्चों को एक बेहतर और आत्मनिर्भर भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है।