बस्तर की धरती पर IGKV छात्रों ने डॉ. त्रिपाठी के जैविक फार्म में देखा प्रकृति, विज्ञान और हरित नवाचारों का अद्भुत संगम

रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अंतिम वर्ष के बीएससी (कृषि) के छात्र-छात्राओं का एक अध्ययन दल हाल ही में एक विशेष शैक्षणिक यात्रा पर मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर, चिखलपुटी पहुँचा। यह फार्म न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में जैविक नवाचारों का एक जीवंत प्रयोगशाला बन चुका है। यहां विद्यार्थियों ने विज्ञान, परंपरा और पर्यावरणीय संतुलन के अनूठे समन्वय का प्रत्यक्ष अनुभव किया।

सबसे पहले, छात्रों को यह जानकर गहरी प्रेरणा मिली कि यह फार्म भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित ऑर्गेनिक हर्बल फार्म है, जहाँ सन् 1995–96 में जैविक खेती प्रारंभ की गई थी और आज से लगभग 25 साल पहले सन् 2000 में इसे देश का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणित ऑर्गेनिक हर्बल फार्म घोषित किया गया।

दूसरा प्रमुख आकर्षण रही इस फार्म की देश भर मशहूर मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16’, (MDBP-16 ) । यह किस्म डॉ. राजाराम त्रिपाठी द्वारा 30 वर्षों के लगातार अनुसंधान से विकसित की गई है, जो अन्य काली मिर्च किस्मों की तुलना में त्रिगुण और चतुर्गुण उत्पादन देती है, और कम देखभाल में भी देश के किसी भी हिस्से में उगाई जा सकती है। पिछले वर्ष इस भारत सरकार ने भी पंजीकृत करते हुए मान्यता प्रदान की है।

छात्रों ने यहां निर्मित एक अद्भुत संरचना—नेचुरल ग्रीनहाउस—का भी अवलोकन किया। यह अत्यधिक महंगे पॉलीहाउस (₹40 लाख प्रति एकड़) का एक स्वदेशी, सस्ता (₹2 लाख प्रति एकड़) और पर्यावरण अनुकूल विकल्प है, जो वृक्षों की संरचना से निर्मित होता है और हर साल 5 लाख से लेकर 2 करोड रुपए तक प्रति एकड़ सालाना की जबरदस्त पर कमाई देने वाला यह मॉडल वर्तमान में पूरे देश एवं विदेशों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

इसके अलावा, फार्म पर स्टीविया नामक प्राकृतिक मीठी पत्तियों वाली औषधीय वनस्पति पर भी विशिष्ट अनुसंधान किया गया है। शक्कर से 30 गुना अधिक मीठी, जीरो कैलोरी, बिना कड़वाहट वाली नई स्टीविया किस्म को भारत सरकार की शीर्ष शोध संस्थान CSIR-IHBT पालमपुर के साथ MOU कर विकसित किया गया है। यह नवाचार मधुमेह पीड़ितों और स्वास्थ्य जागरूक समाज के लिए विशेष महत्व रखता है।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में फार्म की पाँचवीं और सबसे विशेष उपलब्धि है – 7 एकड़ भूमि में देश की 340 प्रकार की दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण। इस प्राकृतिक औषधीय उद्यान में लगभग 25 से अधिक ऐसी प्रजातियाँ संरक्षित की गई हैं जो विलुप्तप्राय हैं और रेड डाटा बुक में सूचीबद्ध हैं। यह क्षेत्र वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, बैगा-गुनियों और देश-विदेश से आने वाले वैद्यों के लिए अध्ययन का आदर्श स्थल बन चुका है।

छात्रों के दल का नेतृत्व डॉ. आर. के. ठाकुर (स्पोर्ट्स ऑफिसर, IGKV) तथा श्रीमती पुष्पा साहू (संकाय प्रभारी, प्लांट पैथोलॉजी) ने किया। फार्म निदेशक अनुराग कुमार एवं संस्था संपदा की विशेषज्ञ जसमती नेताम, बलाई चक्रवर्ती तथा कृष्णा नेताम ने विस्तारपूर्वक भ्रमण करवाया मौके पर जानकारी दी। फार्म भ्रमण की उपरांत बैठक सभागार में डॉ आरके ठाकुर एवं पुष्पा साहू जी का सम्मान किया गया तथा उन्हें ” मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 ” पर भारतीय मसाला अनुसंधान केंद्र द्वारा प्रकाशित विशेष शोध-पत्र की प्रति भी प्रदान की गई।

डॉ. राजाराम त्रिपाठी, जो न केवल एक वरिष्ठ जैविक किसान, बल्कि अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं का भारत सरकार की राष्ट्रीय औषधि पादप बोर्ड के सदस्य भी है हैं ,ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की असली ताकत उसकी धरती, उसकी जड़ी-बूटियाँ और उसकी जैविक परंपराएँ हैं। आवश्यकता केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन्हें विकसित करने की है।
विद्यार्थियों ने इस यात्रा को शैक्षणिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी एवं जीवन में दिशा देने वाला अनुभव बताया और मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म को भारत में जैविक क्रांति का प्रतीक स्थल माना ।

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