प्लास्टिक मुक्त दिवस पर रायपुर की महिलाओं और छात्राओं की मिसाल: थैला अपनाओ, पर्यावरण बचाओ अभियान को नई दिशा

रायपुर, 3 जुलाई। राजधानी रायपुर में जहां हर दिन प्लास्टिक का विशाल ढेर जमा हो रहा है, वहीं कुछ समर्पित महिला समूह और कॉलेज की छात्राएं इस कचरे के पहाड़ को कम करने के लिए एक मिसाल बनकर उभरी हैं।

प्लास्टिक छोड़ो, थैला अपनाओ
अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस के अवसर पर चल रही इनकी मुहिम न केवल पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण है, बल्कि यह दर्जनों महिलाओं को रोजगार भी दे रही है। साथ ही समाज में जागरूकता की नई लहर भी पैदा कर रही है। इनका स्पष्ट संदेश है—”प्लास्टिक छोड़ो, थैला अपनाओ।”

रायपुर और बीरगांव नगर निगम क्षेत्र से रोजाना लगभग 750 टन कचरा निकलता है, जिसमें से 250 टन नॉन-रिसाइकिलेबल प्लास्टिक होता है। यह पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती है।

थैला बैंक और महिला समूहों की भूमिका
रायपुर नगर निगम ने इस समस्या से निपटने के लिए तीन साल पहले ‘थैला बैंक’ की शुरुआत की थी। वहीं, महिला स्व-सहायता समूह पिछले एक दशक से अधिक समय से पुराने कपड़ों, जूट और कागज से मजबूत और सुंदर थैले बना रहे हैं। शुरुआत में कुछ महिलाएं जुड़ी थीं, लेकिन आज यह संख्या सैकड़ों में पहुंच गई है।

रोजाना बिकते हैं 20 से 50 थैले
इनमें से सावित्री चंद्राकर बताती हैं कि वे रोजाना 20 से 30 थैले बेचती हैं। भीड़ वाले दिनों में यह संख्या 50 तक पहुंच जाती है, हालांकि कई बार बिक्री घटकर 10-15 तक भी रह जाती है। वे इस बात से थोड़ी निराश हैं कि लोग अब भी प्लास्टिक थैलों का उपयोग करते हैं।

राधाबाई कॉलेज की छात्राओं की भागीदारी
मठपारा स्थित राधाबाई कॉलेज की छात्राएं भी इस मुहिम में शामिल हैं। हर साल वे कपड़े के थैले तैयार कर लोगों में मुफ्त वितरित करती हैं और प्लास्टिक के दुष्प्रभावों पर जागरूकता अभियान चलाती हैं।

कॉलेज की प्राचार्य डा. प्रीति मिश्रा ने बताया कि इस वर्ष लगभग 100 थैले तैयार किए गए हैं, जिन्हें वितरित कर पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई जाएगी।

प्रदेश के लिए प्रेरणा बनी महिलाएं
इन महिला समूहों की कोशिशें आज पूरे प्रदेश के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। ये महिलाएं अपने हुनर से आमदनी कर रही हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ, हरित और सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर रही हैं।

यह देखकर गर्व होता है कि रायपुर की महिलाएं और युवाएं मिलकर पर्यावरण संरक्षण की इस लड़ाई को जन आंदोलन में बदल रही हैं।

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