छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पत्नी की वर्जिनिटी टेस्ट कराने की मांग को महिलाओं के गरिमा और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। पति की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने इस तरह की मांग को असंवैधानिक करार दिया। यह मामला तब सामने आया जब पति ने पत्नी पर शारीरिक संबंध बनाने में सक्षम न होने का आरोप लगाया और वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की, जबकि पत्नी ने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाया था।
हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर पति खुद पर लगे आरोपों को गलत साबित करना चाहता है, तो वह अपना मेडिकल परीक्षण करा सकता है, लेकिन पत्नी पर ऐसे आरोप थोपना अवैधानिक है।
पूरा मामला रायगढ़ जिले के एक युवक और उसकी पत्नी के बीच उत्पन्न विवाद से जुड़ा है, जिसमें पति ने पत्नी के चरित्र पर शक करते हुए वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की थी।
महिला ने भरण-पोषण के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी और आरोप लगाया था कि पति नपुंसक है। वहीं, पति ने पत्नी पर अवैध संबंधों का आरोप लगाया था। फैमिली कोर्ट ने पति की दलील को खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई थी, जिस पर कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की और सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है, और यह किसी भी परिस्थिति में छीने नहीं जा सकते।