छत्तीसगढ़ में जमीन रजिस्ट्री सिस्टम में बड़ा बदलाव, घूसखोरी और फर्जीवाड़े पर लगेगी लगाम

छत्तीसगढ़ सरकार जमीन रजिस्ट्री के सिस्टम को पूरी तरह से बदलने की दिशा में काम कर रही थी। जैसे ही इसकी जानकारी कुछ अधिकारियों को मिली, उन्होंने हड़ताल पर जाने की रणनीति बना ली। वॉट्सऐप पर इस संबंध में मैसेज भेजे जाने लगे।
मंत्री ओपी चौधरी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने तुरंत एक्शन लिया। अफसर इस बात से नाराज़ थे कि सरकार रजिस्ट्री के तुरंत बाद उसी वक्त जमीन का नामांतरण (म्युटेशन) भी करने की व्यवस्था ला रही है। इससे लोगों का समय बचेगा और नामांतरण प्रक्रिया में होने वाली घूसखोरी पर भी रोक लगेगी।
मंत्री ओपी चौधरी ने महसूस किया कि कुछ कर्मचारी इस नई प्रक्रिया को रोकना चाहते हैं। उन्होंने ऐसे अधिकारियों को मंत्रालय बुलवाया। उन्होंने बताया कि पुरानी गड़बड़ियों की डिटेल निकलवाई और एक फाइल तैयार कर सभी अधिकारियों के सामने रखी। साथ ही साफ शब्दों में कहा कि “अच्छे बदलाव में सहयोग करें। पुराने मामलों से मुझे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अगर बाधा डालेंगे तो मुझे मजबूरी में यह फाइल ACB-EOW को सौंपनी पड़ेगी।”
इसके बाद अधिकारियों ने स्थिति को समझा और हड़ताल से जुड़े मैसेज डिलीट करने लगे। मंत्री ने बताया कि कुछ फाइलों में तो उन्होंने कोरे कागज ही रखे थे, लेकिन जो गलत करता है, उसे डर तो लगता ही है।
बदलाव क्यों जरूरी था?
मंत्री ओपी चौधरी का कहना है, “No economy, no country, no society has become great without adopting technology and reform.” अगर रिफॉर्म से सिस्टम भागेगा तो अच्छे बदलाव नहीं होंगे। जमीन की रजिस्ट्री के बाद नामांतरण के लिए लोगों को बहुत भटकना पड़ता था, हर किसी ने ये झेला है।
शिकायतें मिलती थीं कि किसी और की जमीन किसी और ने बेच दी, लोन किसी और के नाम पर था लेकिन जमीन बिक गई। अब इस पूरी प्रक्रिया को डिजिटल किया जा रहा है।
अब नहीं होगा फर्जीवाड़ा
पिछले डेढ़ साल में “सुगम एप” के जरिए 2 लाख से ज्यादा रजिस्ट्री हो चुकी हैं। इसमें प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने वालों की फोटो जमीन पर खड़े होकर ली जाती है, जो रिकॉर्ड से लिंक होती है। साथ ही जमीन का लोकेशन (लैटीट्यूड-लॉन्गिट्यूड) भी रिकॉर्ड होता है। इससे दोबारा फर्जी बिक्री ट्रेस हो जाती है।
अब जमीन को आधार से लिंक किया जा रहा है। पहले एक ही नाम के आधार का गलत इस्तेमाल करके कोई भी रजिस्ट्री करा सकता था। अब फिंगरप्रिंट और रेटिना स्कैन के जरिए आधार से मिलान किया जाएगा।
ऑनलाइन हिस्ट्री और दस्तावेज
अब कोई भी जमीन खरीदने से पहले उसकी हिस्ट्री ऑनलाइन देख सकता है। किसके नाम पर है, कोई लोन है या नहीं – सारी जानकारी वॉट्सऐप या डिजिलॉकर पर मिल सकती है। पहले इसके लिए पटवारी और दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। अब “भुइंया एप” से सारी जानकारी मिल जाएगी।
नामांतरण का नया सिस्टम
पहले जमीन की रजिस्ट्री के बाद तहसीलदार के सामने नामांतरण का आवेदन देना पड़ता था, जिससे लोगों को काफी दिक्कत होती थी। अब रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण हो जाएगा और रजिस्ट्री ऑफिस से ही उसके दस्तावेज मिल जाएंगे। कहीं भटकने की जरूरत नहीं होगी।
अगर किसी कारणवश गलत नामांतरण हो गया तो उसके लिए अपील का सिस्टम भी मौजूद है। यह सुविधा अब तक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में थी। हरियाणा में भी नामांतरण 7 दिन बाद स्वतः होता है। अब छत्तीसगढ़ भी इसी दिशा में कदम बढ़ा चुका है।
भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार
नामांतरण की लंबी प्रक्रिया और रिश्वतखोरी के चलते आम लोगों को 10 से 50 हजार रुपए तक देने पड़ते थे। अब यह पूरी प्रक्रिया नि:शुल्क और पारदर्शी होगी। किसानों और ज़मीन मालिकों को इससे सीधी राहत मिलेगी।