POCSO मामले में महिला को 10 साल बाद बरी, स्कूल रिकॉर्ड को उम्र साबित करने के लिए अविश्वसनीय बताया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण ज्यूडिशियल इंटरवेंशन करते हुए POCSO एक्ट के तहत दोषसिद्ध एक महिला को 10 वर्ष बाद बरी कर दिया है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया कि मामले में पुरुष की कथित नाबालिग उम्र साबित करने के लिए जिस स्कूल रिकॉर्ड पर भरोसा किया गया था, वह विश्वसनीय या विधिक रूप से स्वीकार्य फाउंडेशनल डॉक्यूमेंट्स से समर्थित नहीं था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि:
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ट्रायल कोर्ट ने आयु निर्धारण के लिए स्कूल रिकॉर्ड को बिना आवश्यक मूल दस्तावेजों की पुष्टि किए स्वीकार कर लिया, जो एक सबलस्टैंटिव लीगल एरर है।
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ऐसे मामलों में जन्मतिथि की पुष्टि के लिए प्राइमरी डॉक्यूमेंटेशन—जैसे जन्म प्रमाण पत्र या विश्वसनीय अस्पताल रिकॉर्ड—पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
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केवल एंट्री-आधारित स्कूल रिकॉर्ड को निर्णायक सबूत मान लेना न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि गलत उम्र निर्धारण न केवल आरोपित की कानूनी स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि POCSO जैसे संवेदनशील कानूनों की विश्वसनीयता और उसके enforcement integrity पर भी सीधा प्रभाव डालता है।
इस फैसले को ज्यूडिशियल फोरम्स में एक significant precedent के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह POCSO मामलों में उम्र निर्धारण की प्रक्रिया के लिए अधिक robust evidentiary standards की आवश्यकता को पुनः रेखांकित करता है।
