एक वहशी दरिंदे ने बीच सड़क एक गरीब परिवार की बेटी पर धारदार हथियार से दर्जनों वार कर उसके जीवन को नरक बनाने की घिनौनी करतूत कर शहर को शर्मशार किया। शर्मिदंगी पुलिस के लिए ज़्यादा है, जो थाने से चंद कदम दूर मुख्य सड़क पर एक नर पिशाच बाल खींचकर एक बिना माँ की युवती को लहुलुहान करता रहा और पुलिस किसी रहगुज़र से सूचना की आस में ए.सी. कमरे में पसरे रही। पुलिस के आला अफसरों को भी सोचना होगा कि उनको चुनौती देकर अपराध करने वालों का जुलूस निकालने बस से उनकी भूमिका पूरी नहीं होती, बल्कि अपराध होने से पहले रोकना भी उनकी बड़ी जिम्मेदारी है।युवती को परेशान कर रहे शादीशुदा शख्स ने काफी लंबे समय से पूरे परिवार को प्रताड़ित कर रखा था, किन्तु पुलिस उनके मन में विश्वास का माहौल नहीं बना पायी कि पीड़ित परिवार सहारा मांगने उन तक पहुंचता। अविश्वसनीय पुलिसिंग ऐसे घटनाक्रमों के लिए सीधे जिम्मेदार होती है, अतः नकारा थानेदारों पर भी गाज़ गिरनी चाहिए, जिससे अपराधियों पर खौफ बनें और नागरिक सुरक्षा के लिए तैनात थाने के पूरे बल को भी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास पूरे समय रहें। साउंड प्रूफ बंद कमरे से पुलिस को निकलकर जनता का दर्द समझना होगा और थानेदारों को ऐसी घटनाओं को खुद के लिए चुनौती मानते हुए ऐसा कड़कपन दिखाना होगा कि गुंडे, मवालियों के हौसले अपराध करने के पहले पस्त हो जाएं और सामुदायिक पुलिसिंग की बेहतरी से जनता भी पुलिस की वाहवाही खुद कर सकें।
मुहब्बत, मैरिज और मौत की मिस्ट्री में उलझा शहर :- प्रेम विवाह के बाद रिसेप्शन की महफिल में नव युगल की आस में सारे मेहमान थे, पर उनकी जगह उनकी मौत की दर्दनाक खबर पंडाल व फूड स्टॉल में पहुंची। मौत भी ऐसी कि नव दंपत्ति के बीच बंद कमरे में हुई कहासुनी के बाद हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों का शरीर खूनी खंजर से क्षतविक्षत मिला। पूरा परिवार सदमें में हैं और मौत अपना तांडव दिखा चुका है। शादी के खुशनुमा माहौल को गमगीन कर कई सवाल छोड़कर दो जिंदगियां असमय दुनियां से रूखसत कर गई। इस घटना के कई एंगल पर पुलिस की जांच चल रही है, किन्तु युवाओं में विवाह व जीवन साथी के लिए इतनी कड़वाहट के कारणों का मनोविज्ञान समझने की जरूरत विशेषज्ञों सहित अब हर घर में महसूस की जाने लगी हैं।
अंकल, बड़ा होकर ई.डी. का अफसर बनूंगा :-
घर आए नेताजी ने बच्चों से उत्सुकतावश पूछ लिया ‘बेटे बड़े होकर क्या बनोगे… ?’, जवाब सुनकर नेताजी उस कार्यकर्ता की गली से ही आजकल मुंह मोड़ लिया है। सबने जानना चाहा कि भला बच्चे ने ऐसा क्या जवाब दिया कि नेताजी बच्चे के बर्थडे पार्टी के बाद गुमसुम से दिखे…, नेताजी का सीना असल में अपने ही दो सवाल के जवाब से छलनी हुआ था। क्या बनोगे?, तो बच्चे ने मासूमियत से बता दिया कि ‘ई.डी.’ अफ़सर, दूसरा सवाल लगे हाथ नेताजी ने फिर दागा- ई.डी. पुलिस ही क्यूं? बच्चे का मासूम सा जवाब था कि आपको पकड़ने का पावर होगा अंकल मेरे पास और आप कहीं भाग भी नहीं सकते। बस, तब से नेताजी खोये-खोये से रहने लगे।
ई.डी. का भूत इंद्रावती में भी दिखा :-
एक जमाना था कि उधारी लिया हुआ और बेवफा माशूका से दूर हुआ प्रेमी आँखे बचाकर गली के रास्ते दबे पांव निकलता था, पर अब जब से ई.डी. की आँख मिचौली चल रही है, नेता, अफसर तो छोड़ो, इनके चपरासी तक ई.डी. की आमद की खबर से हड़बड़ा जाते हैं। इंद्रावती में धमकी ई.डी. की खबर जैसे ही हवा में घूमती हुई शहर में पहुंची, सत्ता के केन्द्र महानदी व इंद्रावती भवनों में शब्दों की लफ्फ़ाजी और जुगाली में माहिर लोग कुर्सी छोड़ बीच सड़क पर टहलना शुरू कर दिया था। कई तो ऐसे भी, जो बिल्डिंग के बाहर से और इनमें से कुछ आधे रास्ते से लौटना खुद के लिए मुनासिब समझा कि कहीं सादे भेष में ई.डी. के साहबों के साथ धोखे से भी “हाय-हैलो“ हुई तो पूरी कुंडली खुलकर उनका भी भूत-भविष्य ई.डी. न पढ़ डाले।
हाय रे नेतागिरी :-
कांग्रेस अधिवेशन में नेताओं की ताकत का प्रदर्शन फुल पॉवर में है। कांग्रेस के अधिवेशन में पोस्टर वॉर ऐसा छिड़ा है कि ट्रैफिक सिग्नल पर आप ज्यादा देर रूके या सांस रोक किसी उद्यान में आप ध्यान मुद्रा में शांत ज्यादा देर खड़े या बैठे दिखे, तो कोई अपना बैनर, पोस्टर आप पर न चस्पा कर दें, इसका भय भी आम नागरिकों को सताना लाज़मी है। अब नेता भी बेचारे किस-किस से भिड़ें, किसकी सुनें, किसकी न सुनें। पहले विपक्षी, अपने पक्षी, गुट के नेता, अपने आका, अपने काका, सब तो एक गलती पर पिल पड़ते हैं और ये साल चुनावी साल है, जिसमें वोटर भी चुपचाप बजाने में देरी नहीं करता।
एक सवाल :-
– इलेक्शन ईयर में बीजेपी 15 बनाम 5 साल का जुमला छोड़ने में आधी रात डरावने सपने क्यों आने लगते हैं?
– इस पंच वर्षीय सी.बी.आई. के फ्लॉप और ई.डी. के हिट होने की असल वजह क्या है ?
– छत्तीसगढ़ में ‘आप’ के पैठ जमाने से किस पार्टी को सबसे ज्यादा पाप लगेगा ?
– छत्तीसगढ़ के किस विधायक के अनुचर दावे के साथ उन्हें समझाते है कि टिकट किसी को भी मिले, पर आपको नहीं मिलेगी।