मुफ्तखोरी का चुनावी घोषणा पत्र :- चुनावी बिगुल छत्तीसगढ़ में फूंका जा चुका है, सियासी दलों के आकाओं की लैंडिंग छत्तीसगढ़ में शुरू हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी के मुखिया और पंजाब के सदर ने राजधानी रायपुर में अपनी पहली चुनावी सभा ली। दिल्ली की तर्ज पर 24 घंटे बिजली और किसानों से एक-एक दाना धान खरीदने का वादा करके छत्तीसगढ़ से दोनों ने टेकऑफ किया है। मांगने और मुफ्त बांटने वाले का हश्र क्या होता है, ये जानना है तो बस पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर नज़र घुमा लीजिए, जहां के सियासतदार कटोरा लेकर अब पूरी दुनियां घूम रहे हैं और भीख ढेला भर भी नहीं मिल रहा है, पर आश्वासन भर-भर कर मिल रहा है।
राजधानी में क्राइम का रोड-शो :- फिर नशेड़ियों के हाथों एक घर का चिराग बुझ गया। मानव विज्ञानियों के मुताबिक अपराध की प्रवृत्ति रातों-रात नहीं पनपती, बल्कि नशा, पैसा और बचाने वाले आकाओं की जब पूरी जुगलबंदी होती है, तब ही अपराध घर के दरवाजे से खुली सड़कों पर नाच दिखाती है। पुलिस इस नेटवर्क को तोड़ने की उतनी ही कोशिश करती है, जितने में उनकी इज्ज़त तार-तार होने से बचती रहें। इन हालातों से समाज को बाहर लाने सियासत, सरकार और सलाहकारों को एकजुट होना होगा। अपराध के घटित होने के बाद डेमेज कंट्रोल में जुटने वाले पुलिसिया अंदाज को अब समय रहते खुद में बदलाव लाना चाहिए, नहीं तो कालिख पुती अफसराना अंदाज के खिलाफ जो सुगबुगाहट सिर्फ गली-मोहल्ले की चर्चा तक सीमित है, वह दावानल बनकर बड़ी आंधी बनने में देर नहीं करेगी।
कानून के राज में हाथ जोड़ी पुलिस :- आजकल सियासी पिटाई मीडिया में खबरें बनी दिखती हैं। कभी ई.डी. की उठक-बैठक, तो कभी सड़क पर तमाशबीन कार्यकर्ताओं को थप्पड़, उसके बाद धरना प्रदर्शन, घेराव, माफीनामा की वेबसीरिज़ सड़कों में बनती नज़र आती है। ऐसी ही कहानी से जी.ई. रोड पांच घंटे जाम रहा पर पुलिस की माफीनामा के बाद सिर्फ पांच मिनट में भीड़ ने सड़क छोड़ दिया, इसके मायने बहुत बड़े है। राजधानी रायपुर की लाइफ लाइन पांच घंटे बंद रहे, एम्बुलेंस में वेंटिलेटर में तड़पता बच्चा अस्पताल पहुंचने रास्ते की तलाश में हो, मीडिया का कैमरा देखकर नेतागिरी की आंखें तेजी से चमकती हो और पुलिस बेबस हाथ जोड़े माफीनामा के साथ खड़ी हो, क्या देश में कानून का राज इसे ही कहते है?
नॉर्थ ईस्ट में डूबा फिर भी बेड़ा पार की जुगत :- राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को नॉर्थ ईस्ट में बड़ी उम्मीद थी, लेकिन छोटे-बड़े नेताओं के अलसाये सोच ने इस उम्मीद को धराशायी कर दिया। बुरी हालत तो मेघालय में हुई, जहां पंजा पांच पर ही सिमट गया, और तो और नागालैंड में दो सीट में कहानी खतम हो गई। अब बारी हिन्दीभाषी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य की है। राजस्थान में गहलोत की बॉलिंग और सचिन की बैटिंग से जीत-हार का फैसला होगा तो मध्यप्रदेश में छीका टूटने की उम्मीद कांग्रेस को है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आत्मविश्वास से भरी दिख रही है और इस समय “कका“ आतिशी बैटिंग करते हुए सत्ता और संगठन में पैर जमाए हुए हैं।
एक सवाल :-
* होली पारस्परिक प्रेम व भाईचारे का त्यौहार है, तो हर सियासतदार अलग-अलग होली मनाने की जगह एक साथ मिलकर एक बड़ा आयोजन क्यों नहीं कर पाते, क्या इसे ही मेढक तौलना कहा जाता है ?
* नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर काबिज होने के बाद अगली कुर्सी के लिए तरसने का जंजाल इस चुनाव में भी दिखेगा या इस मायाजाल से मुक्ति मिलेगी ?
* जल-जीवन मिशन से जल कहीं, जीवन किसी और को मिल रहा है पर भरपेट फड़फड़ा रही मछलियों की जान बचाने वाला मसीहा कौन बन रहा है ?