हमारे मन का दर्पण भी तभी हमें वास्तविक ‘स्वयं’ दिखाता है, जब वह शांत और स्थिर होता है।
जब पानी उबलता है, तब उसमें अपना चेहरा नहीं दिखता।
ठीक उसी प्रकार, जब हम गुस्से में होते हैं तो स्वयं को नहीं देख पाते, स्वयं से दूर हो जाते हैं।
जब दर्पण पर भाप जम जाती है, तो वह हमें प्रतिबिंब नहीं दिखा पाता। दर्पण चाहता है कि कोई आगे बढ़कर उसकी धुंध हटाए।
जैसे ही भाप हटती है, दर्पण हमें साफ-साफ दिखाने लगता है।
👉 आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र से जानिए—
विवेक कब खो जाता है और उसे बचाने का उपाय क्या है।
