बैसरन घाटी में टूरिस्टों पर आतंकी हमला: 15 मिनट की फायरिंग में 26 की गई जान

कश्मीर की मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन बैसरन घाटी में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब पर्यटक फोटो ले रहे थे, वीडियो बना रहे थे और एडवेंचर एक्टिविटी में मशगूल थे। अचानक जंगल की ओर से गोलियों की आवाज़ गूंजी और आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। शुरुआत में टूरिस्ट्स को कुछ समझ नहीं आया और वे अपनी मस्ती में डूबे रहे। लेकिन जल्द ही स्थिति स्पष्ट हो गई—घाटी पर हमला हुआ है।
करीब 10 से 15 मिनट की इस भयानक फायरिंग में 26 लोगों की जान चली गई। हमला करने के बाद आतंकी जंगल के रास्ते भाग निकले। अब तक उनकी कोई खबर नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, इस हमले में कुल 5 आतंकी शामिल थे—तीन लोकल और दो विदेशी। जांच एजेंसियों को शक है कि यह हमला लोकल सपोर्ट के बिना संभव नहीं था। आतंकियों ने जंगल के रास्ते त्राल से बैसरन घाटी तक का सफर तय किया, जो सड़क मार्ग से 55 किमी है लेकिन जंगल के रास्ते सिर्फ 20 किमी।
हमले के बाद पहलगाम और बैसरन घाटी सुनसान हो गई है। टूरिज्म से जुड़ी सारी गतिविधियाँ बंद हैं, दुकानें और होटल खाली हैं। घाटी में करीब 200 लोग रोजगार पाते थे, जो अब घर लौट चुके हैं।
इंटेलिजेंस एजेंसियां अब तक 200 से ज्यादा लोकल लोगों से पूछताछ कर चुकी हैं। उनका फोन रिकॉर्ड भी खंगाला जा रहा है और मीडिया से बात करने पर अस्थायी रोक है।
हमले के वक्त का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें एक कश्मीरी युवक एक घायल बच्चे को कंधे पर उठाकर भागता नजर आता है। युवक का नाम सज्जाद अहमद भट है, जो पेशे से टूरिस्ट गाइड और शॉल विक्रेता हैं। सज्जाद ने बताया कि हमला होते ही वे मौके पर पहुंचे और घायल लोगों की मदद की। उन्होंने पानी पिलाया, कुछ को कंधे पर और कुछ को घोड़े पर हॉस्पिटल तक पहुँचाया।
‘आतंकियों ने पहले पहाड़ियों से गोलियां बरसाईं’
सज्जाद की तरह नजाकत अहमद शाह ने भी बहादुरी दिखाई। उन्होंने छत्तीसगढ़ से आए 11 टूरिस्ट की जान बचाई। नजाकत बताते हैं, “मैं टूरिस्ट गाइड हूं और शॉल बेचने का काम भी करता हूं। छत्तीसगढ़ से आए ये सभी लोग मेरे जानने वाले थे। 17 तारीख को ये जम्मू पहुंचे थे और मैं इन्हें गुलमर्ग और जम्मू घुमा कर आख़िर में पहलगाम लाया था।”
“हम दोपहर 12:30 बजे बैसरन घाटी पहुंचे। तभी 2-3 बार फायरिंग की आवाज़ आई। पहले लगा बच्चों ने पटाखे चलाए होंगे, लेकिन फिर लोग चीखने लगे। हम जमीन पर लेट गए। मैंने बच्चों को उठाया, एक को गोद में, एक को पीठ पर और एक को हाथ में लेकर नीचे भागा। बाद में पता चला कि एक महिला ऊपर रह गई है, तो मैं दोबारा गया और उन्हें भी लेकर नीचे लाया।”
नजाकत के अनुसार, “हम जिस जगह खड़े थे, उसके दूसरी तरफ की पहाड़ी से पहले गोलियां चलनी शुरू हुईं। फिर चारों ओर से फायरिंग होने लगी। हम किसी को देख नहीं पाए, लेकिन बच्चों को बचाने में सफल रहे।”
5 किमी दूर CRPF का कैंप, लेकिन बैसरन घाटी में सिक्योरिटी नहीं
सूत्रों के मुताबिक, आतंकियों को मालूम था कि बैसरन घाटी में कोई सिक्योरिटी तैनात नहीं होती। घाटी में CCTV कैमरे भी नहीं हैं। नजदीकी CRPF कैंप करीब 5 किमी दूर है और वहां से मौके तक पहुँचने में आधा घंटा लग सकता है। घाटी तक पैदल, घोड़े या ATV से ही पहुंचा जा सकता है, इसलिए आतंकी जल्दी भाग निकले।
डिफेंस एक्सपर्ट बोले: त्राल के जंगल आतंकियों का गढ़, बैसरन घाटी सबसे करीब
रिटायर्ड ब्रिगेडियर विजय सागर के अनुसार, “बैसरन घाटी के दोनों ओर पहाड़ और जंगल हैं। एक ओर किश्तवाड़ और दूसरी ओर त्राल का घना जंगल है, जो आतंकियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना है।” उनका कहना है कि आतंकी त्राल के रास्ते घाटी में आए और फायरिंग के बाद उसी जंगल में गायब हो गए।