हरियाणा के वरिष्ठ IPS अधिकारी वाय. पुरन कुमार की संदिग्ध मौत: जांच और आरोपों का पूरा ब्यौरा

हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाय. पुरन कुमार की मौत (आत्महत्या की आशंका) ने प्रशासन और जनता दोनों में बेचैनी बढ़ा दी है। उनके द्वारा छोड़े गए कथित ‘फाइनल नोट’ में वरिष्ठ अधिकारियों पर जाति-आधारित भेदभाव, मानसिक प्रताड़ना और सार्वजनिक अपमान के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

🔍 घटना का समय और आरोपों का स्वरूप

  • पुरन कुमार, 2001 बैच के हरियाणा कैडर के IPS अधिकारी थे, दर्जनों वर्षों से पुलिस सेवा में रहे।

  • 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित अपने घर में उन्होंने आत्महत्या की।

  • उनके ‘फाइनल नोट’ (अस्थायी रूप से आत्महत्या-नोट के समान) में उन्होंने DGP हरियाणा शत्रुजीत कपूर, रोहतक एसपी नरेंद्र बिचार्णिया सहित कई पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का नाम लिया है, उन पर मानसिक उत्पीड़न और भेदभाव करने का आरोप लगाया गया है।

  • नोट में आरोपी अधिकारियों पर यह भी आरोप है कि वे उन्हें पदोन्नति, छुट्टियाँ, वाहन आवंटन, आवास आदि अधिकारों से वंचित करते रहे और शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया।

🏛️ कानूनी कार्रवाई और जांच

  • उनके पत्नी, वरिष्ठ IAS अधिकारी अमनीत पुरन कुमार, ने नोट के आधार पर एक FIR दर्ज कराई है जिसमें आत्महत्या के लिए उकसाने (abetment to suicide) की धारा के साथ-साथ SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की कड़ी धाराएँ जोड़ी गई हैं।

  • FIR में अब SC/ST अधिनियम की धारा 3(2)(v) भी शामिल की गई है, जो ऐसे मामलों में कठोर दंड का प्रावधान करती है।

  • वरिष्ठ अधिकारी नरेंद्र बिचार्णिया को उनके Rohtak एसपी पद से हटा दिया गया है।

  • चंडीगढ़ पुलिस ने एक Special Investigation Team (SIT) गठित की है, जिसका नेतृत्व IG पुष्पेन्द्र कुमार कर रहे हैं, इस मामले की निष्पक्ष और गहरी जांच के लिए।

⚠️ विवाद, सार्वजनिक प्रतिक्रियाएँ और परिवार की मांगें

  • परिवार ने अभी तक पोस्टमॉर्टम (PM) की अनुमति नहीं दी है, क्योंकि वे चाहते हैं कि आरोपों के नाम स्पष्ट हों और दोषियों पर कार्रवाई हो।

  • राजनीति और दलित समूहों की ओर से सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि उच्च अधिकारियों की भूमिका की न्यायसंगत जांच हो।

  • बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने राज्यव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है यदि दस दिनों में कार्रवाई नहीं हुई।

✅ आगे की चुनौतियाँ और संभावित हल

  • दोषियों के संज्ञान, सही कानूनी प्रक्रिया और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना होगा।

  • SC/ST कानून की धाराओं का सही प्रयोग, उत्पीड़न की घटनाओं को सार्वजनिक रूप से सामने लाना और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।

  • पुलिस व प्रशासनिक पदों पर भारतीय सर्वोच्च न्यायालय और मानवाधिकार आयोगों की निगरानी जरूरी हो सकती है।

  • मानसिक स्वास्थ्य व कार्यस्थल के दबावों को कम करने के लिए विभागीय शिकायत-प्रणाली मजबूत होनी चाहिए।

🔎 निष्कर्ष

वाय. पुरन कुमार का मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत tragedy नहीं है, बल्कि यह भारत में प्रशासनिक प्रणाली में मौजूद भेदभाव, उत्पीड़न और अधिकारों की उपेक्षा की पुरानी समस्याओं को उजागर करता है। यदि न्याय नहीं हुआ, तो यह घटना सार्वजनिक विश्वास को और कमजोर करेगी। ऐसे मामलों में निष्पक्ष, शीघ्र और पारदर्शी कार्रवाई ही समाज और अधिकारियों दोनों के लिए सही रास्ता है।