राज्य में नए प्लेस्कूल नियम लागू: 3 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप सख्ती बढ़ी
राज्य स्कूल शिक्षा विभाग ने निजी प्लेस्कूल और नर्सरी संस्थानों के लिए सख्त आयु सीमा नियम लागू कर दिए हैं। नई अधिसूचना के अनुसार, कोई भी निजी प्लेस्कूल या नर्सरी अब 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रवेश नहीं दे सकेगा। यह निर्णय स्थानीय शिक्षा मानकों को राष्ट्रीय नीतियों के अनुरूप लाने और प्रारंभिक बाल शिक्षा में गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
शिक्षा विभाग की नई व्यवस्था तुरंत प्रभाव से लागू हो चुकी है, और सभी निजी प्लेस्कूल, नर्सरी, डे-केयर आधारित शिक्षण संस्थानों को आयु-मानदंड सुनिश्चित करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
सख्त आयु सीमा क्यों जरूरी?
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, इस निर्णय के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूपता
NEP 2020 के अनुसार, प्रारंभिक बाल विकास के लिए 3–8 वर्ष की आयु को “Foundational Stage” माना गया है। इससे पहले की उम्र को औपचारिक शिक्षा के लिए उपयुक्त नहीं देखा जाता।
2. बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की जरूरतें
2–3 वर्ष की उम्र के बच्चों की बुनियादी विकास आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं:
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भावनात्मक स्थिरता
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भाषा सीखने की शुरुआती अवस्थाएँ
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संज्ञानात्मक विकास
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मोटर स्किल्स का निर्माण
विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम उम्र में औपचारिक शिक्षण वातावरण बच्चे पर दबाव डाल सकता है।
3. बढ़ती शिकायतें और अव्यवस्थित प्रवेश प्रणाली
पिछले कुछ वर्षों में अभिभावकों और बाल अधिकार संगठनों ने शिकायत की थी कि कई निजी प्लेस्कूल 1.5 से 2 वर्ष के बच्चों को भी औपचारिक कक्षाओं में बैठा रहे थे। इन संस्थानों पर बच्चों को आवश्यक उम्र से पहले संरचित शिक्षा में शामिल करने का आरोप लगाया गया था।
निजी प्लेस्कूलों के लिए क्या बदलेगा?
नई अधिसूचना के बाद निजी संस्थानों के लिए निम्नलिखित निर्देश अनिवार्य हो गए हैं:
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नर्सरी/प्री-नर्सरी में प्रवेश की न्यूनतम आयु: 3 वर्ष (1 अप्रैल तक).
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डे-केयर सुविधाओं को औपचारिक शिक्षा की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा, इसलिए वे केवल देखभाल सेवाएँ प्रदान कर सकेंगे।
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सभी प्लेस्कूलों को बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से सत्यापित करना होगा।
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आयु सीमा नियम तोड़ने पर संस्था के खिलाफ जुर्माना, मान्यता रद्दीकरण और अन्य प्रशासनिक कार्रवाई की जा सकती है।
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प्लेस्कूलों को अपने एडमिशन ब्रोशर, वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर आयु सीमा स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करनी होगी।
अभिभावकों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ
इस निर्णय पर अभिभावकों की प्रतिक्रियाएँ दो हिस्सों में बँटती दिखीं।
समर्थन में अभिभावक
कई अभिभावकों ने इसे बच्चे के विकास के दृष्टिकोण से एक सकारात्मक कदम बताया। उनका कहना है:
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कम उम्र के बच्चों को घर का वातावरण अधिक अनुकूल होता है।
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औपचारिक शिक्षा समय से पहले शुरू करने से बच्चा तनावग्रस्त हो सकता है।
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राष्ट्रीय स्तर पर मानकों को एकसमान करना जरूरी था।
विरोध या व्यावहारिक चुनौतियाँ बताने वाले अभिभावक
कुछ अभिभावकों ने कहा कि कामकाजी माता-पिताओं के लिए यह फैसला चुनौती पैदा कर सकता है, क्योंकि:
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प्लेस्कूल अक्सर डे-केयर की भूमिका भी निभाते हैं।
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2–3 वर्ष के बच्चों के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय डे-केयर विकल्प सीमित हैं।
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नए नियमों के बाद शुरुआती शिक्षण सुविधाएँ कम हो जाएँगी।
शिक्षाविदों की राय: सही दिशा में कदम
शैक्षणिक विशेषज्ञों और बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञों ने इसे एक सकारात्मक और आवश्यक कदम बताया है। विशेषज्ञों के अनुसार:
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0–3 वर्ष के बच्चे को माता-पिता या परिवार द्वारा प्रदान किया जाने वाला इंटरैक्शन ही सबसे प्रभावी होता है।
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औपचारिक शिक्षण सामग्री की जगह बच्चों को इस उम्र में खेल, संवेदनात्मक गतिविधियाँ और सामाजिक जुड़ाव की ज़रूरत होती है।
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छोटे बच्चों को स्कूल-जैसे अनुशासन में लाने की जल्दी नहीं करनी चाहिए।
कई विशेषज्ञों ने शिक्षा विभाग के इस निर्णय को “लंबे समय से लंबित सुधार” बताया।
प्लेस्कूल संचालकों की चिंता: आयु सीमा से व्यावसायिक असर
निजी प्लेस्कूल संचालक इस नए नियम को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है:
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आयु सीमा बढ़ने से उनका प्रवेश आधार कम हो जाएगा।
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कई प्लेस्कूल डे-केयर मॉडल पर आधारित हैं, इसलिए उन्हें अब अलग-अलग सेवाओं की स्पष्टता रखनी होगी।
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नए नियमों के अनुरूप स्टाफ प्रशिक्षण, सुविधाएँ और शुल्क संरचना में बदलाव करना पड़ेगा।
हालांकि शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि नियम विकासात्मक और राष्ट्रीय नीति के मानक के अनुसार बनाए गए हैं, और संस्थानों को समायोजन के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।
राज्य शिक्षा विभाग की चेतावनी: नियम तोड़े तो कार्रवाई तय
विभाग ने एक विशेष निर्देश जारी किया है कि:
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अगर कोई प्लेस्कूल 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रवेश देते पाया गया,
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अगर आयु-आधारित दस्तावेज सत्यापन नहीं किया गया,
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या प्रवेश नीति में पारदर्शिता नहीं रखी गई,
तो संस्था के खिलाफ कड़ा प्रशासनिक कदम उठाया जाएगा।
एजुकेशन ऑफिसरों को जिले स्तर पर निरीक्षण बढ़ाने और अचानक जांच करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर क्यों बढ़ रहा है आयु-आधारित मानकीकरण?
भारत में पिछले कुछ वर्षों में प्रारंभिक शिक्षा को लेकर कई बदलाव देखे गए हैं:
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NEP 2020 ने “Foundational Learning” की नई संरचना लागू की।
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देशभर के राज्यों को Pre-School और LKG/UKG की उम्र को एकसमान करने का निर्देश दिया गया।
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बाल विकास और शिक्षा मंत्रालय ने भी 3 वर्ष से कम उम्र में औपचारिक शिक्षा को अनुचित बताया है।
राज्य द्वारा यह नया नियम लागू करना इसी व्यापक राष्ट्रीय सुधार अभियान का हिस्सा है।
आगे क्या?
शिक्षा विभाग अगले कुछ महीनों में:
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प्लेस्कूल संचालन मानकों की नई गाइडलाइन जारी करेगा।
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डे-केयर केंद्रों के लिए अलग पंजीकरण प्रक्रिया बनाएगा।
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फाउंडेशनल स्टेज के शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेगा।
अधिकारियों ने बताया कि राज्य के सभी जिलों को 60 दिनों के भीतर रिपोर्ट जमा करनी होगी कि कितने प्लेस्कूल नए नियमों के अनुरूप हो गए।
निष्कर्ष
राज्य शिक्षा विभाग का यह निर्णय प्रारंभिक बाल शिक्षा में आवश्यक सुधार और मानकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नर्सरी या प्लेस्कूल में प्रवेश न देने का नियम न केवल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप है बल्कि बच्चों के समुचित मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हालांकि यह कदम कुछ अभिभावकों और प्लेस्कूल संचालकों के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आएगा, लेकिन व्यापक रूप से देखा जाए तो यह परिवर्तन प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली को अधिक वैज्ञानिक, संवेदनशील और बाल-केंद्रित बनाएगा। आने वाले महीनों में यह देखा जाएगा कि राज्य किस तरह इन नियमों को ज़मीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करता है।
