राहुल गांधी का समर्थन पत्र: क्या दीपक बैज के पक्ष में है हाईकमान का झुकाव?
राजनीतिक भूचाल के बीच आया राहुल गांधी का पत्र
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच राहुल गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को पत्र लिखकर न केवल उनके संगठनात्मक प्रयासों की सराहना की, बल्कि यह संकेत भी दे दिया कि हाईकमान फिलहाल बैज के साथ खड़ा है।
राहुल गांधी ने पत्र में क्या कहा?
“प्रिय दीपक बैज,
आशा करता हूँ कि आप कुशल होंगे। मैं छत्तीसगढ़ कांग्रेस द्वारा महिलाओं के खिलाफ हो रहे भयावह अपराधों और राज्य में बिगड़ती कानून-व्यवस्था के खिलाफ पदयात्रा निकालने के लिए आपकी सराहना करता हूँ।
हमें न्याय की लड़ाई जारी रखनी होगी और लोगों तक आशा का संदेश पहुँचाना होगा।”
— राहुल गांधी, पत्र में
बैज की सक्रियता बनी ‘ढाल’
बलौदाबाजार की हिंसा
इंद्रावती नदी संरक्षण
प्रदेश में बढ़ते अपराध
जवानों के सम्मान में तिरंगा यात्रा
इन सभी मुद्दों पर दीपक बैज ने ज़मीनी स्तर पर जन संवाद स्थापित किया। यही वजह है कि राहुल गांधी का पत्र सिर्फ औपचारिक सराहना नहीं, बल्कि एक रणनीतिक समर्थन के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर लगा विराम?
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार के बाद टीएस सिंहदेव, अमरजीत भगत और इंद्रशाह मंडावी जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सामने आए थे। कुछ नेताओं ने तो दिल्ली में लॉबिंग भी शुरू कर दी थी।
लेकिन अब राहुल गांधी के पत्र के बाद यह माना जा रहा है कि:
✅ हाईकमान जल्दबाज़ी में नहीं है
✅ सक्रियता और ज़मीनी पकड़ को प्राथमिकता दी जाएगी
✅ गुटबाज़ी से दूर नेताओं को तवज्जो मिलेगी
बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी बनी चर्चा का विषय
हाल ही में दुर्ग में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर प्रस्तावित पदयात्रा और मुख्यमंत्री निवास घेराव में दीपक बैज खुद मौजूद रहे, लेकिन:
भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव जैसे वरिष्ठ नेता नहीं दिखे
चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू ने दिया साथ
इंद्रावती बचाओ पदयात्रा और तिरंगा रैली में भी नदारद रहे कई नाम
यह गैरमौजूदगी कांग्रेस के भीतर एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
क्या बदलेंगे सियासी समीकरण?
राहुल गांधी का पत्र एक Game Changer की तरह देखा जा रहा है। बैज समर्थकों में उत्साह है, जबकि विरोधी गुटों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
संकेत साफ है — हाईकमान अब ऐसे चेहरों को तरजीह देना चाहता है, जो ज़मीनी मुद्दों पर काम कर रहे हैं, न कि सिर्फ नाम या वरिष्ठता के आधार पर संगठन चलाना चाहते हैं।
नजरें अब दिल्ली की ओर — क्या यह पत्र नेतृत्व परिवर्तन की फाइल को रोक देगा? या यह सिर्फ एक ‘राजनीतिक ब्रेक’ है? आने वाले हफ्तों में स्थिति और स्पष्ट होगी।