छत्तीसगढ़ में कुत्तों की निगरानी में लगी प्राचार्यों की ड्यूटी: शिक्षक बोले– पढ़ाएं या कुत्ते पकड़ें, कांग्रेस का तंज– “बस यही दिन देखना रह गया था”

रायपुर।

छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है। कई जिलों में स्कूल प्राचार्यों, शिक्षकों और शिक्षा कर्मचारियों को आवारा कुत्तों की निगरानी, गणना और पकड़ने की कार्यवाही में लगाया गया है। आदेश जारी होने के बाद शिक्षक वर्ग में गहरी नाराजगी है। वहीं कांग्रेस ने इसे “राज्य की प्रशासनिक विफलता” बताते हुए तंज कसा कि “शिक्षक पढ़ाने के बजाय अब कुत्ते पकड़ने में ड्यूटी देंगे—बस यही दिन देखना रह गया था।”

सरकारी आदेशों के मुताबिक, स्थानीय निकायों द्वारा चलाए जा रहे “डॉग कंट्रोल ड्राइव” में शिक्षा विभाग के कर्मियों को भी शामिल किया गया है। इसमें शिक्षकों को वार्ड-वार आवारा कुत्तों की संख्या, स्थान, आक्रामक व्यवहार, स्कूल परिसर में जोखिम और नगर निगम कर्मियों के साथ समन्वय जैसे कार्य सौंपे गए हैं।

मामला कैसे शुरू हुआ?

पिछले कुछ महीनों में प्रदेश में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने और कई जिलों में बच्चों पर हमले की घटनाएं दर्ज होने के बाद प्रशासन ने अभियान तेज किया है। नगर निगम और नगरीय निकायों को निर्देश दिया गया कि वे स्कूलों, हॉस्टलों और आंगनबाड़ी केंद्रों के आसपास विशेष मॉनिटरिंग करें।

इसी दौरान कई जिलों में जारी आदेशों में शिक्षकों को भी “डॉग सर्वे” और “कुत्ता पकड़ने की मॉनिटरिंग” में लगाया गया, जिसमें प्राचार्यों को टीम लीडर तक बना दिया गया।

ये आदेश सामने आते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गए और शिक्षा जगत में तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो गई।

शिक्षक बोले– “हम पढ़ाएं या कुत्ते पकड़ें?”

शिक्षक संगठनों ने कहा कि यह आदेश शिक्षा व्यवस्था का मज़ाक उड़ाने जैसा है। प्रमुख शिकायतें इस प्रकार हैं:

  • “शिक्षक की जिम्मेदारी शिक्षण कार्य है, कुत्ते गिनना नहीं।”

  • “प्राचार्यों को स्कूल प्रशासन संभालना होता है, न कि पशु पकड़ने की निगरानी।”

  • “स्कूल स्टाफ पहले ही कई गैर-शैक्षणिक कार्यों में फंसता है, अब यह नया बोझ।”

  • “यदि कुत्ते काट लें या किसी विवाद की स्थिति बने तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?”

एक शिक्षक ने कहा,

“शिक्षा की गुणवत्ता घट रही है, कक्षाओं में शिक्षकों की कमी है, और हमसे कहा जा रहा है कि कुत्ते पकड़ने का डेटा भेजो। हम पढ़ाएं या सर्वे करते रहें?”

दूसरे प्राचार्य ने टिप्पणी की,

“प्रशासन को समझना चाहिए कि स्कूल कोई नगरपालिका का कंट्रोल रूम नहीं है। यह आदेश तत्काल वापस होना चाहिए।”

कांग्रेस ने प्रशासन पर बोला हमला

कांग्रेस ने मुद्दे को राजनीतिक मोड़ देते हुए कहा कि यह “बेतुकी व्यवस्था” है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने बयान जारी करते हुए कहा:

“शिक्षक जो राष्ट्र निर्माण की बुनियाद हैं, उन्हें अब कुत्तों की गिनती और निगरानी पर लगाया जा रहा है। लगता है सरकार से इससे बड़ा काम बचा ही नहीं। बस यही दिन देखना रह गया था।”

कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि:

  • शिक्षकों को गैर-ज़रूरी कार्यों में लगाने की परंपरा बढ़ रही है।

  • शिक्षा की गुणवत्ता गिर रही है क्योंकि सारा स्टाफ प्रशासनिक कामों में उलझाया जा रहा है।

  • स्कूल सुरक्षा की जिम्मेदारी नगरपालिका पर होनी चाहिए, शिक्षक पर नहीं।

प्रशासन का पक्ष– “बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च”

वहीं प्रशासन का तर्क है कि निर्देश गलत समझे जा रहे हैं। निकायों और शिक्षा विभाग ने कहा:

  • स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है।

  • शिक्षकों को कुत्ते पकड़ने नहीं, रिपोर्टिंग और मॉनिटरिंग का काम दिया गया है।

  • कई बार निगम कर्मचारियों को सटीक जानकारी नहीं मिलती, इसलिए स्कूलों से रिपोर्ट जरूरी है।

  • डॉग-बाइट के बढ़ते मामलों को देखते हुए समन्वय महत्वपूर्ण है।

अधिकारियों का कहना है,

“केवल उन क्षेत्रों में शिक्षकों से सहयोग मांगा गया है जहां स्कूल परिसर में कुत्तों का खतरा बढ़ा है। यह सिर्फ डेटा-संग्रह और रिपोर्टिंग का काम है, पकड़ने की जिम्मेदारी नगर निगम की ही है।”

हालांकि, आदेश की भाषा और ज़मीनी परिप्रेक्ष्य में यह अंतर स्पष्ट नहीं था, जिसके कारण विवाद खड़ा हुआ।

क्या वास्तव में शिक्षकों का बोझ बढ़ रहा है?

शिक्षक संगठन पिछले कई वर्षों से शिकायत कर रहे हैं कि :

  • पोलियो ड्राइव

  • सर्वेक्षण

  • जनगणना काम

  • मतदाता सूची संशोधन

  • सामाजिक योजनाओं का प्रचार

  • प्रशासनिक बैठकें

  • अब आवारा कुत्तों का मॉनिटरिंग

इन सब गैर-शैक्षणिक कार्यों से शिक्षक कक्षा में ध्यान नहीं दे पा रहे।

कई अध्यापकों ने कहा कि शिक्षा यदि प्राथमिकता है तो शिक्षकों को अध्ययन-संबंधी कार्यों तक ही सीमित रखना चाहिए।

अभिभावकों की मिश्रित प्रतिक्रिया

अभिभावकों की प्रतिक्रिया दो हिस्सों में बँटी हुई है:

  1. कई अभिभावकों का कहना है कि स्कूल परिसर में कुत्तों की संख्या बढ़ी है और यह खतरनाक है। अगर शिक्षक रिपोर्टिंग में मदद करते हैं तो यह बच्चों की सुरक्षा के लिए अच्छा है।

  2. वहीं कुछ अभिभावक तर्क देते हैं कि शिक्षक पढ़ाने के लिए हैं, अन्य विभागों को अपने काम स्वयं करने चाहिए।

विशेषज्ञों की राय

शैक्षिक नीति विशेषज्ञों का कहना है कि:

  • शिक्षकों को असंगत कार्यों में लगाने से शिक्षा गुणवत्ता प्रभावित होती है।

  • स्कूलों की सुरक्षा निकायों की जिम्मेदारी है, उसका बोझ शिक्षकों पर नहीं डालना चाहिए।

  • प्रशासनिक आदेशों में स्पष्टता आवश्यक है ताकि गलतफहमियां पैदा न हों।

पशु-व्यवहार विशेषज्ञों ने कहा कि आवारा कुत्तों का मुद्दा बढ़ता जा रहा है और इसे तकनीकी, पशु-कल्याण और वैज्ञानिक तरीकों से हल किया जाना चाहिए, न कि परोक्ष रूप से शिक्षकों पर निर्भर होकर।

आगे क्या हो सकता है?

विवाद बढ़ने के बाद संभावना है कि:

  • शिक्षा विभाग आदेश की भाषा में संशोधन करेगा।

  • निगरानी की जिम्मेदारी शिक्षक से हटाकर नगर निगम को दी जा सकती है।

  • स्कूलों में CCTV, सुरक्षा गार्ड और निकाय कर्मियों की संयुक्त टीम बनाई जाएगी।

  • भविष्य में शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से छूट देने की नीति पर चर्चा शुरू होगी।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, जल्द ही इस मामले पर बैठक बुलाई जाएगी।

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या गंभीर है, लेकिन उससे निपटने के लिए स्कूल प्राचार्यों और शिक्षकों को जिम्मेदारी सौंपना कई सवाल खड़े करता है।
शिक्षक समुदाय की नाराजगी, कांग्रेस का राजनीतिक हमला, और प्रशासन की स्थिति स्पष्ट करती है कि आदेश में पारदर्शिता और तर्क की कमी थी।

यह मामला न केवल शिक्षा व्यवस्था की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रशासनिक निर्णय कितनी तेजी से विवाद का रूप ले सकते हैं, यदि उन्हें संवेदनशीलता और स्पष्टता के साथ लागू न किया जाए।