भगवान राम से जुड़ा छत्तीसगढ़: राजिम, शिवरीनारायण, बस्तर और रामनामी परंपरा की अद्भुत आस्था
रायपुर। छत्तीसगढ़ की धरती केवल हरियाली और लोकसंस्कृति की नहीं, बल्कि भगवान श्रीराम की भक्ति और आस्था की भी प्रतीक भूमि है। त्रेता युग में भगवान राम ने वनवास काल के दौरान इस क्षेत्र की यात्रा की थी, और आज भी छत्तीसगढ़ के कई स्थानों — राजिम, शिवरीनारायण, बस्तर और पूरे शरीर को राम का वास मानने वाले रामनामी संप्रदाय में उनकी स्मृतियाँ गहराई से बसती हैं। राजिम – छत्तीसगढ़ का प्रयागराज :- राजिम को “छत्तीसगढ़ का प्रयागराज” कहा जाता है। यहाँ महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों का संगम स्थल है।मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में यहाँ विश्राम किया और भगवान विष्णु की उपासना की थी।यहाँ स्थित राजीव लोचन मंदिर और हर साल लगने वाला राजिम कुंभ मेला इस क्षेत्र को आस्था का केंद्र बनाते हैं।

महानदी के बीच स्थित 9वीं सदी का चमत्कारी कुलेश्वर महादेव मंदिर, हर साल होता है भव्य माघी पुन्नी मेला : छत्तीसगढ़ के प्रयाग के नाम से मशहूर राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर स्थित प्राचीन कुलेश्वर महादेव मंदिर अपनी मान्यताओं और चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है। यह 9वीं शताब्दी का प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका निर्माण कालचुरी काल में हुआ था। लोककथाओं के अनुसार, वनवास के दौरान माता सीता ने यहां रेत से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की थी, जिससे इस स्थान का धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।

शिवरीनारायण – शबरी भक्ति की धरती – शिवरीनारायण को उस भक्ति की भूमि माना जाता है जहाँ भगवान श्रीराम ने माता शबरी के झूठे बेर खाकर भक्तिभाव का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था।यहाँ का शबरी मंदिर और नारायणेश्वर मंदिर आज भी भगवान राम की उपस्थिति का एहसास कराते हैं।
बस्तर – भगवान राम के वनगमन की रहस्यमयी पगडंडियाँ :-बस्तर का घना जंगल भगवान राम के वनवास मार्ग का अभिन्न हिस्सा रहा है। यहाँ की जनजातीय संस्कृति में ‘राम पगडंडी’ और ‘रामायण गाथा’ लोकगीतों के रूप में पीढ़ियों से जीवित हैं।दंतेवाड़ा का माँ दंतेश्वरी मंदिर, चित्रकूट क्षेत्र और सुकमा-दरभा के जंगलों को भगवान राम की तपस्थली माना जाता है।बस्तर की लोककला, रामलीला और जनकथाएँ भगवान राम की स्मृतियों को हर दिल में बसाए रखती हैं।
इंजाराम मंदिर: जहाँ भगवान राम ने की थी पूजा — दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले में स्थित इंजाराम (राम का आना)का प्राचीन मंदिर आज भी भगवान राम की भक्ति और उनके वनवास काल की यादों को संजोए हुए है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में इंजाराम में रुककर पूजा-अर्चना की थी। यह स्थल न केवल भगवान राम की कथा से जुड़ा है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि बस्तर की धरती हमेशा से आस्था और सभ्यता की जननी रही है।यही वजह है कि यह स्थल बस्तर की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।स्थानीय जनजातियों और पुजारियों के अनुसार, भगवान राम जब माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ दंडकारण्य वन की ओर बढ़ रहे थे, तब उन्होंने इंजाराम के इस पवित्र स्थान पर रुककर भगवान शंकर की पूजा की थी।कहा जाता है कि यहाँ के शिवलिंग की स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी । यह मंदिर सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति और लोक-परंपरा का प्रतीक भी है। यहाँ के मुरिया और गोंड समुदाय रामायण की कथा को लोकगीतों के रूप में गाते हैं।

रामनामी संप्रदाय – शरीर पर ‘राम’, मन में भक्ति
छत्तीसगढ़ की सबसे अनूठी धार्मिक परंपरा है रामनामी संप्रदाय,जिसके अनुयायी अपने पूरे शरीर पर “राम” शब्द का गोदना करवाते हैं और केवल राम नाम के जाप को ही भक्ति का मार्ग मानते हैं।उनका विश्वास है कि “राम नाम ही सच्चा मंदिर है” और भक्ति किसी बाहरी मंदिर या जाति से नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ी होती है। रामनामी संप्रदाय मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों जैसे बलौदा बाजार–भाटापारा जिला (विशेषकर डोंगरगढ़, कसडोल, पलारी क्षेत्र),महासमुंद जिला (राजिम और समीपवर्ती गांव),बिलासपुर और जांजगीर-चांपा जिला,मुंगेली , सारंगढ़-बिलाईगढ़ के ग्रामीण अंचल में पाया जाता है। यहाँ के गाँवों में आज भी रामनामी लोग “राम नाम कीर्तन” और “रामनामी मेला” का आयोजन करते हैं, जहाँ बिना भेदभाव के सभी लोग ‘राम नाम’ का गुणगान करते हैं।
उनका पहनावा — सफेद धोती, सिर पर सफेद पगड़ी और शरीर पर ‘राम’ शब्द — उन्हें दूर से पहचानने योग्य बनाता है। छत्तीसगढ़ आज भी भगवान श्रीराम की आस्था, लोकगाथा और भक्ति परंपरा का जीवंत केंद्र है।इस तरह राजिम की त्रिवेणी, शिवरीनारायण की शबरी कथा, बस्तर के वनों की पगडंडियाँ और रामनामी संप्रदाय की आत्मभक्ति —
ये सभी मिलकर छत्तीसगढ़ को वास्तव में “राममय प्रदेश” की उपाधि प्रदान करते हैं।


