नकली नाम पर पट्टे, असली खरीदार बड़े बिल्डर: शहर में अफसर-बिल्डर गठजोड़ से 10 हजार वर्गफुट की ज़मीन का खेल, सरकारी जमीन भी बिकी

रायपुर। राजधानी में ज़मीन घोटाले का एक और नया चेहरा सामने आया है। यहां राजस्व और नगर निगम के अफसरों की मिलीभगत से फर्जी नामों पर ज़मीन के पट्टे बनाए गए, लेकिन असली खरीदार बड़े बिल्डर निकले।

जानकारी के अनुसार खम्हारडीह, देवपुरी और डीडी नगर क्षेत्र में करीब 42 सरकारी पट्टे ऐसे निकले, जिनमें जिनके नाम से ज़मीन है, उन्होंने कभी ज़मीन देखी तक नहीं। जांच में पता चला कि दलालों ने झुग्गी में रहने वाले लोगों के नाम पर पट्टे बनवाए और बाद में उन्हें बिल्डरों को ट्रांसफर कर दिया।

10 हजार वर्गफुट तक के प्लॉट के पीछे 25 से 40 लाख रुपये तक की दलाली दी गई। दस्तावेज़ों में अफसरों की सीधी मिलीभगत के सबूत मिले हैं।

जमीन खरीदने से पहले लेआउट और डायवर्सन जरूर देखें

  • जमीन खरीदने से पहले उसका डायसर्वन-लेआउट जरूर देखना चाहिए।
  • डायवर्सन से ये पता चलता है कि जमीन का उपयोग कृषि से आवासीय हो चुका।
  • टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से ले-आउट पास है या नहीं इसकी जानकारी लें।
  • 25 मीटर चौड़ी सड़कें, सीवरेज, बिजली, गार्डन आदि के लिए जमीन है या नहीं।
  • डायवर्सन और लेआउट स्वीकृत होने के बाद ही प्लॉट की खरीदी करें।

बचने के लिए जिम्मेदार दे रहे अपने-अपने तर्क

एफआईआर करना पु​लिस का काम अवैध प्लाटिंग के खिलाफ निगम सख्त है। सभी जगहों के प्रकरण बनाकर पुलिस को भेज रहे हैं। निगम के पास प्रशासनिक अधिकार है। एफआईआर दर्ज करना पुलिस का काम है।विश्वदीप, कमिश्नर ननि, रायपुर

24 घंटे के भीतर देते हैं रिपोर्ट निगम हो या फिर पुलिस विभाग। जिस दफ्तर से भी जमीन रिकार्ड की जानकारी मांगी जाती है 24 घंटे के भीतर उपलब्ध करा दी जाती है। जमीन के रिकार्ड अब ऑनलाइन है। नंद कुमार चौबे, एसडीएम रायपुर


जमीन रजिस्ट्री से पहले ही तय हो जाती है पोस्टिंग: RERA से लेकर तहसील तक नेटवर्क, अफसरों को 5% तक हिस्सेदारी

बिलासपुर। ज़मीन रजिस्ट्री और बिल्डिंग परमिशन के पीछे सिस्टमेटिक अफसर-बिल्डर नेटवर्क काम कर रहा है। तहसील, RERA, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और रजिस्ट्री कार्यालय में पहले से तय होता है कि किस अफसर को कहां लगाया जाएगा।

जांच में सामने आया कि हर बड़े रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में 3% से 5% तक का हिस्सा अफसरों को अलग से जाता है, जो “सहमति” के नाम पर तय होता है।

इस गठजोड़ से एक जमीन का नक्शा 7 दिन में पास हो जाता है, जबकि आम आदमी महीनों चक्कर लगाता है।
सूत्रों के अनुसार, प्रत्येक 1 एकड़ जमीन की डील में 60 से 90 लाख रुपए तक सिर्फ ‘नेटवर्क चार्ज’ में खर्च होते हैं, जो सीधे अफसर-दलाल-बिल्डर के बीच बंटता है।