किरण पिस्दा ने रचा इतिहास: 22 साल बाद भारत महिला एशियन कप के लिए क्वालिफाई, छत्तीसगढ़ की बेटी बनी गौरव की मिसाल

भारतीय महिला फुटबॉल टीम ने 22 साल के लंबे इंतजार को खत्म करते हुए एएफसी महिला एशियन कप 2026 के लिए क्वालिफाई कर इतिहास रच दिया है। इस ऐतिहासिक जीत में छत्तीसगढ़ के बालोद की बेटी किरण पिस्दा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही।

🇮🇳 डिफेंस की दीवार बनी किरण, थाईलैंड को हराया

क्वालिफाइंग टूर्नामेंट थाईलैंड में आयोजित हुआ, जहां भारत ने ग्रुप-बी के सभी मुकाबले जीतकर दमदार प्रदर्शन किया। निर्णायक मुकाबले में भारत ने थाईलैंड को 2-1 से हराया। मिडफील्डर संगीता बसफोर के दो गोल ने बढ़त दिलाई, लेकिन जीत को बनाए रखने में किरण पिस्दा की डिफेंडर के रूप में निर्णायक भूमिका रही।

🌟 छत्तीसगढ़ की पहली यूरोपीय महिला फुटबॉलर

किरण सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान बना चुकी हैं। वह यूरोपीय क्लब से खेलने वाली छत्तीसगढ़ की पहली महिला फुटबॉलर हैं। 2023 में क्रोएशिया के एक फुटबॉल क्लब से अनुबंध कर यूरोप में भी अपनी छाप छोड़ी। इससे पहले वह सेतू एफसी (चेन्नई) और केरल ब्लास्टर्स वुमन टीम का हिस्सा रह चुकी हैं।

🏃‍♀️ संघर्ष की कहानी: बिना सरकारी सहायता के अंतरराष्ट्रीय सफर

किरण ने फुटबॉल का सफर बालोद के संस्कार शाला मैदान से शुरू किया। जहां सुविधा नहीं थी, वहां उन्होंने रोज़ाना 500 मीटर दूर जाकर अभ्यास किया। कभी सरकारी मदद नहीं मिली, लेकिन मेहनत, परिवार का समर्थन और लगन ने उन्हें देश की शान बना दिया।

🏅 नेशनल में गोल्ड, इंटरनेशनल में धमक

किरण 2014 से लगातार कटक, गोवा, मणिपुर, अंडमान-निकोबार सहित कई राज्यों में नेशनल टूर्नामेंट्स खेल चुकी हैं। 2022 में नेपाल में आयोजित साउथ एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2023 में भुवनेश्वर में आयोजित जनजातीय नेशनल चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जिताया।

👨‍👩‍👧 परिवार का गर्व, छत्तीसगढ़ का गौरव

किरण के पिता महेश पिस्दा जिला निर्वाचन कार्यालय में क्लर्क हैं और माता गृहणी हैं। बेटी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर पूरा परिवार भावुक और गौरवांवित है। उनका कहना है कि यह सफलता पूरे बालोद और छत्तीसगढ़ के लिए प्रेरणा है।

🏟️ प्रतिदिन 6 घंटे का अभ्यास, समर्पण की मिसाल

जब भी किरण बालोद आती हैं, सुबह 5 से 8 और शाम 4 से 7 बजे तक लगातार अभ्यास करती हैं। उनका समर्पण युवाओं के लिए मिसाल है कि सीमित संसाधनों के बावजूद कुछ भी संभव है।

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