6 महीने की गर्भवती नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

एक अहम फैसले में हाईकोर्ट ने 6 महीने की गर्भवती नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दे दी है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि पीड़िता को अपने शरीर और भविष्य से जुड़े फैसले लेने का पूरा अधिकार है और इस अधिकार से उसे वंचित नहीं किया जा सकता।

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखा। अदालत ने माना कि जब गर्भ पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध ठहरा हो और उससे उसके जीवन व भविष्य पर गंभीर असर पड़ने की आशंका हो, तब गर्भपात की अनुमति देना न्यायोचित है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग होने के बावजूद पीड़िता की स्वायत्तता और गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने निर्देश दिए कि गर्भपात की प्रक्रिया विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में सुरक्षित तरीके से की जाए, ताकि पीड़िता के स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो।

इस फैसले को महिला और बाल अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय उन मामलों में मिसाल बनेगा, जहां दुष्कर्म पीड़िताओं को सामाजिक दबाव और कानूनी जटिलताओं के कारण मानसिक यातना झेलनी पड़ती है।

हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे संवेदनशील मामलों में पीड़िता की पहचान और गोपनीयता बनाए रखना प्रशासन और मीडिया की जिम्मेदारी है।