छत्तीसगढ़ बना देश का पहला राज्य, ग्रीन जीडीपी के लिए पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन शुरू

छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने ग्रीन जीडीपी के तहत वन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन शुरू किया है। इस पहल से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के व्यापक मूल्य को मापकर राज्य के सतत विकास को नया दिशा मिलेगा और पर्यावरण संरक्षण तथा आर्थिक प्रगति के बीच संतुलन स्थापित किया जाएगा।

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत 2047” विजन और सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार कर रही है, जिसमें वन विभाग द्वारा संचालित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यांकन की अवधारणा को शामिल किया गया है। यह दृष्टिकोण राज्य में सतत और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक प्रगति के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

वन मंत्री श्री केदार कश्यप ने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन बजटीय योजना को सुव्यवस्थित करेगा, भविष्य की रणनीतियों को दिशा देगा, धन आवंटन को अधिक प्रभावी बनाएगा और वानिकी विकास के प्रयासों को सशक्त करेगा। यह कदम सतत विकास और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल होगी।

छत्तीसगढ़ में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम ने स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया है। गुरु घासीदास, कांगेर घाटी और इंद्रावती जैसे राष्ट्रीय उद्यानों के साथ, राज्य में प्रकृति आधारित पर्यटन के लिए असीम संभावनाएं हैं। स्थानीय निवासियों को जंगल सफारी, नेचर ट्रेल्स और इको-कैंपिंग जैसी सुविधाओं के प्रबंधन में शामिल किया जा रहा है, जिससे सामाजिक-आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिल रहा है।

राज्य का 44 प्रतिशत भू-भाग वन क्षेत्र से आच्छादित है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार है और लाखों लोगों की आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वनों से प्राप्त होने वाले अमूर्त लाभों में जलवायु संतुलन, कृषि के लिए परागण, पोषक तत्वों का चक्रण, मृदा उर्वरता, जैव विविधता संरक्षण, बाढ़ नियंत्रण, जल प्रवाह प्रबंधन और शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करना शामिल हैं। ये सभी सेवाएं राज्य की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर व्यापक आर्थिक प्रभाव डालती हैं और राज्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं।

इस पहल से छत्तीसगढ़ के वन संसाधनों का सही मूल्यांकन किया जाएगा, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों में संतुलन बनेगा।

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