कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला: नशे में नाबालिग के ब्रेस्ट छूने की कोशिश रेप की कोशिश नहीं, आरोपी को मिली जमानत

कोलकाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी कहा है कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश करना प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता।
हालांकि, जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की डिवीजन बेंच ने माना कि यह गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश है। इसके बावजूद कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी तरह के एक फैसले पर रोक लगाते हुए कड़ी टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को कहा था कि यह एक बेहद गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले जज में संवेदनशीलता की भारी कमी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 19 मार्च को एक फैसले में कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना या उसे घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश रेप या रेप की कोशिश नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस पर कहा था, “यह बहुत गंभीर मामला है और फैसले में असंवेदनशीलता दिखाई गई। हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि फैसला लिखते समय संवेदनशीलता का पूरी तरह अभाव था।” केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी सुप्रीम कोर्ट के रुख का समर्थन किया।
कलकत्ता हाईकोर्ट में आरोपी को मिली जमानत
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 10 और IPC की धारा 448/376(2)(c)/511 के तहत दोषी ठहराते हुए 12 साल कैद और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की थी।
याचिका में आरोपी ने कहा कि वह दो साल से अधिक समय से जेल में बंद है और जल्द फैसला आने की कोई संभावना नहीं है। उसने यह भी तर्क दिया कि भले ही पीड़िता, डॉक्टर और गवाहों के बयान स्वीकार किए गए हों, लेकिन उनके आधार पर रेप के प्रयास का आरोप साबित नहीं होता।
अदालत का फैसला
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि बिना पेनेट्रेशन के IPC की धारा 376 लागू नहीं हो सकती। अधिकतम, यह POCSO एक्ट की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के अंतर्गत आता है, जिसकी सजा 5 से 7 साल है।
कोर्ट ने भी माना कि सुबूतों में पेनेट्रेशन का संकेत नहीं है। इसलिए कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और कहा कि ब्रेस्ट छूने की कोशिश रेप के प्रयास की बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आती है।