नई ग्रामीण रोजगार योजना से राज्यों पर बढ़ा वित्तीय दबाव, 60:40 लागत अनुपात पर उठे सवाल

नई दिल्ली।

केंद्र सरकार द्वारा लागू की जा रही नई ग्रामीण रोजगार योजना को लेकर कुछ राज्यों में वित्तीय चिंताएँ सामने आने लगी हैं। विशेष रूप से बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे संसाधन-सीमित राज्यों ने योजना के तहत प्रस्तावित 60:40 लागत साझेदारी अनुपात को लेकर अपनी आपत्तियाँ और व्यावहारिक कठिनाइयाँ केंद्र के समक्ष रखी हैं।

योजना के प्रावधानों के अनुसार कुल परियोजना लागत का 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार वहन करेगी, जबकि शेष 40 प्रतिशत राज्यों को अपने संसाधनों से जुटाना होगा। राज्यों का कहना है कि पहले से ही सीमित राजस्व आधार, सामाजिक कल्याण योजनाओं का बोझ और बुनियादी ढांचे पर बढ़ते खर्च के कारण अतिरिक्त वित्तीय दायित्व निभाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

बिहार और झारखंड जैसे राज्यों ने तर्क दिया है कि ग्रामीण आबादी अधिक होने के कारण योजना का दायरा बड़ा है, जिससे राज्य अंशदान की राशि भी स्वाभाविक रूप से अधिक हो जाती है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि आदिवासी और दूरस्थ क्षेत्रों में परियोजनाओं की लागत अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे 40 प्रतिशत हिस्सेदारी राज्य के बजट पर दबाव बढ़ा सकती है।

राज्य सरकारों ने यह भी आशंका जताई है कि यदि समय पर पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हो पाया, तो योजना के क्रियान्वयन में देरी हो सकती है और रोजगार सृजन के लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं। कुछ राज्यों ने केंद्र से या तो लागत अनुपात में लचीलापन देने या विशेष सहायता पैकेज उपलब्ध कराने की मांग की है।

केंद्र सरकार का पक्ष है कि 60:40 मॉडल से राज्यों की भागीदारी और जवाबदेही बढ़ेगी, जिससे योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित होगा। सरकार का यह भी कहना है कि वित्तीय रूप से कमजोर राज्यों के लिए आवश्यकतानुसार तकनीकी और प्रशासनिक सहयोग पर विचार किया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, नई ग्रामीण रोजगार योजना का उद्देश्य दीर्घकालिक आजीविका सृजन है, लेकिन इसकी सफलता काफी हद तक केंद्र–राज्य समन्वय और वित्तीय संतुलन पर निर्भर करेगी। यदि राज्यों की चिंताओं का समाधान समय रहते किया जाता है, तो योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में अहम भूमिका निभा सकती है।