H-1B वीज़ा शुल्क विवाद
अमेरिका के कई राज्यों ने प्रस्तावित भारी शुल्क वृद्धि को अदालत में चुनौती दी
अमेरिका में H-1B वीज़ा श्रेणी के तहत प्रस्तावित भारी शुल्क वृद्धि को लेकर कानूनी विवाद तेज हो गया है। देश के कई राज्यों ने संघीय अदालत में याचिका दायर करते हुए तर्क दिया है कि यह वृद्धि न केवल विदेशी पेशेवरों के लिए बाधा बनेगी, बल्कि अमेरिकी कंपनियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
राज्यों का तर्क: नवाचार और रोजगार पर असर
याचिकाकर्ता राज्यों का कहना है कि प्रस्तावित शुल्क वृद्धि अत्यधिक है और तकनीकी, स्वास्थ्य तथा शोध क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिभा तक पहुँच को सीमित कर सकती है। उनके अनुसार, कई छोटी और मध्यम अमेरिकी कंपनियाँ अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों पर निर्भर रहती हैं। यदि शुल्क बहुत अधिक हो जाता है, तो कंपनियों के लिए आवश्यक कौशल वाले कर्मचारियों को भर्ती करना मुश्किल होगा।
राज्यों ने यह भी कहा कि इससे स्थानीय रोजगार सृजन, स्टार्टअप इकोसिस्टम और नवाचार गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
अमेरिकी प्रशासन का पक्ष
सरकार का तर्क है कि शुल्क वृद्धि प्रशासनिक लागत, पृष्ठभूमि जाँच और वीज़ा प्रसंस्करण से जुड़े खर्चों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। साथ ही, प्रशासन का कहना है कि यह बदलाव वीज़ा प्रणाली को अधिक “स्व–निर्भर” और “दुरुपयोग–रोधी” बनाएगा।
उद्योग जगत की चिंता
अमेरिकी टेक उद्योग और उच्च कौशल वाले क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने भी इस प्रस्ताव पर चिंता जताई है। कंपनियों का कहना है कि पहले से ही प्रतिभा की कमी का सामना कर रहे क्षेत्रों में यह अतिरिक्त लागत भर्ती को और कठिन बना देगी, जिससे अमेरिकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
आगे क्या?
अदालत द्वारा मामले की सुनवाई अगले कुछ हफ्तों में जारी रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतिम निर्णय आने तक शुल्क वृद्धि लागू होने की संभावना कम है। हालांकि, यह मामला अमेरिका की इमिग्रेशन नीति और हाई-स्किल्ड वर्क वीज़ा प्रणाली के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
