भारतीय रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर के करीब! डॉलर की बढ़ती मांग और कमजोर धारणा बनी वजह
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये (Indian Rupee) पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर (₹88.80 प्रति अमेरिकी डॉलर) के बेहद करीब पहुंच गया है, जिससे बाजार में चिंता का माहौल है।
क्या हैं मुख्य कारण?
रुपये में आई इस गिरावट के पीछे दो प्रमुख कारक काम कर रहे हैं:
- डॉलर की मजबूत मांग (Strong USD Demand): आयातकों और कुछ अन्य इकाइयों से डॉलर की मांग में भारी उछाल आया है। जब देश से बाहर जाने वाले डॉलर की मांग बढ़ती है, तो रुपये की कीमत पर दबाव आता है, और यह कमजोर होने लगता है।
- कमजोर बाजार धारणा (Weak Sentiment): वैश्विक अनिश्चितताओं, विशेष रूप से अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति और भू-राजनीतिक तनाव के कारण निवेशकों की धारणा कमजोर हुई है। विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे रुपये पर और अधिक दबाव पड़ रहा है।
रुपये के कमजोर होने का क्या मतलब है?
रुपये के कमजोर होने से:
- आयात महंगा होगा: कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य आयातित सामानों की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिसका सीधा असर महंगाई (Inflation) पर पड़ेगा।
- विदेशी शिक्षा/यात्रा पर असर: विदेश में पढ़ाई या यात्रा करना महंगा हो जाएगा, क्योंकि आपको एक डॉलर के लिए अधिक रुपये चुकाने होंगे।
- निर्यातकों को फायदा: हालांकि, निर्यात करने वाली कंपनियों को इसका फायदा हो सकता है, क्योंकि उन्हें अपने उत्पादों के बदले अधिक रुपये मिलेंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रहा है और किसी भी तेज गिरावट को रोकने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है।
