नवा रायपुर में तैयार हुआ राजस्थानी महल जैसा हिन्दुस्तानी शांति स्थल
छत्तीसगढ़ की राजधानी नवा रायपुर में एक अनूठा और प्रभावशाली आध्यात्मिक परिसर तैयार हुआ है — ब्रह्माकुमारीज़ के नए केंद्र शांति‑शिखर। इसे राजस्थानी महल की भव्यता से प्रेरित शैली में तैयार किया गया है, जिसमें जोधपुरी पिंक स्टोन, स्वयं-दान की भावना और आधुनिक ब्रिज तकनीक का समावेश है।
प्रमुख बातें
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शांति-शिखर का निर्माण स्थल नवा रायपुर के सेक्टर 20 में स्थित है।
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यह केंद्र “शांति का शिखर” नाम के अनुरूप सज्जित है — यानी एक ऐसा स्थल जहाँ मन, विचार और जीवन में शांति की चोटी हासिल की जा सके।
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कहा जा रहा है कि निर्माण में रॉयल राजस्थान के आरम-परक राजमहलों की शैली को ध्यान में रखा गया है, विशेष रूप से जोधपुरी पिंक स्टोन के इस्तमाल के कारण।
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सूत्रों के अनुसार, इस स्थान को आधुनिक ब्रिज संरचनाओं (ब्रिज तकनीक) द्वारा जोड़ने-संयोजित किया गया है, जिससे सम्पूर्ण परिसर को एक समग्र अनुभव प्राप्त हुआ है।
उद्घाटन पर पीएम मोदी द्वारा प्रस्तुति
नरेन्द्र मोदी 1 नवंबर को इस शांति-शिखर का उद्घाटन करेंगे। यह दिन छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में भी रखा गया है।
प्रधानमंत्री के इस कदम को एक संदेश माना जा रहा है — कि आध्यात्मिक और सामाजिक विकास को राज्य सरकार व सामाजिकองค์กร मिलकर प्राथमिकता दे रहे हैं।
निर्माण-तकनीक व उपयोग
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जोधपुरी पिंक स्टोन का चयन एक विशेष सौंदर्य व ठोसता हेतु किया गया है, जो हाल-सामने आज कल के अनेक मंदिर और राजमाताओं के भवनों में देखने को मिलता है।
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ब्रिज तकनीक से यह सुनिश्चित किया गया है कि विभिन्न विभाग-हॉल, ध्यान कक्ष व सम्मेलन स्थल एक दूसरे से सहज रूप से जुड़े हों — जिससे विज़िटर-अनुभव में बाधा ना हो।
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दान-आधारित मॉडल पर इस परिसर का निर्माण हुआ है — अर्थात् कई व्यक्तियों, संगठनों तथा दानदाताओं की भागीदारी से इसे पूरा किया गया है।
सामाजिक व आध्यात्मिक प्रभाव
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इस स्थान का उद्देश्य मात्र एक भवन नहीं, बल्कि “मानव विचारों”, “शांत वातावरण”, “आत्मिक उन्नति” का केंद्र स्थापित करना है।
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यहाँ समय-समय पर ध्यान-शिविर, वैल्यू-बेस्ड वर्कशॉप, कॉर्पोरेट और युवा कार्यक्रम आयोजित होंगे — जिससे स्थानीय और बाहरी लोग लाभ उठा सकें।
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राज्य की सामाजिक समरसता व सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में यह परियोजना एक प्रतीक बन सकती है।
स्थानीय अर्थ व भविष्य की दिशा
नवा रायपुर जैसे विकासशील शहर में इस तरह का आध्यात्मिक केंद्र आने से अनेक फायदे हो सकते हैं —
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पर्यटन एवं सांस्कृतिक आकर्षण को बढ़ावा मिलेगा।
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स्थान-वादियों को रोजगार व सेवा-अवसर मिल सकते हैं (हॉस्टिंग, टूर गाइड, कर्पोरेट रिज़र्टिंग आदि)।
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युवा-पाठकों को ध्यान व योग जैसी गतिविधियों के लिए आधुनिक सुविधा उपलब्ध होगी।
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राज्य-सरकार और सामाजिक संगठन के बीच साझेदारी व समन्वय स्थापित होगा।
निष्कर्ष
शांति-शिखर, सिर्फ संगमरमर या पत्थर का भवन नहीं है — यह उस विश्वास का संकेत है कि “शांति, सेवा और आत्म-मूल्य” आधुनिक जीवन में भी विलक्षण स्थान रख सकते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा 1 नवंबर को उद्घाटन के साथ, छत्तीसगढ़ और भारत के लिए यह एक नया अध्याय हो सकता है, जहाँ आध्यात्मिकता, संस्कृति और समाज-सेवा का संगम होता है।
