“बीजापुर : जहां गूंजती थीं गोलियों की आवाजें, अब सुनाई देगी स्कूल की घंटी – आजादी के बाद पहली बार भट्टीगुड़ा में खुला स्कूल”

बीजापुर ज़िले के माओवाद प्रभावित इलाक़े भट्टीगुड़ा में एक ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत हुई है। जहां कभी बंदूकों की गोलियों की गूंज सुनी जाती थी, वहां अब बच्चों की मासूम हंसी और स्कूल की घंटी की आवाजें सुनाई देंगी। आज़ाद भारत में पहली बार उसूर ब्लॉक के इस गांव में ‘स्कूल चलो अभियान 2025’ के तहत नवीन प्राथमिक शाला की शुरुआत की गई है।
📚 पहले दिन ही 65 बच्चों का एडमिशन
पहले दिन स्कूल में 75 बच्चों का नामांकन दर्ज हुआ, जिनमें से 65 बच्चों ने क्लास अटेंड किया। बच्चों को स्कूल बैग, कॉपी, किताबें और तीन सेट ड्रेस दी गईं, जिनमें एक स्पोर्ट्स यूनिफॉर्म भी शामिल है।
🧑🏫 स्थानीय युवक बना शिक्षादूत
शिक्षा विभाग ने गांव के ही एक स्थानीय युवक को शिक्षादूत के रूप में नियुक्त किया है, जो बच्चों को पढ़ाने का काम करेगा। साथ ही, दो रसोइयों और एक सफाईकर्मी की भी तैनाती कर दी गई है, जिससे मिड-डे मील और स्कूल की सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित हो सके।
🚸 200 से ज्यादा बच्चों को अभी भी जोड़ना बाकी
गांव में अभी भी लगभग 200 से अधिक बच्चे हैं जिन्हें शिक्षा से जोड़ने की ज़रूरत है। शिक्षा विभाग की टीम ने ग्रामीणों से मिलकर बड़े बच्चों को पास के तिम्मापुर और बासागुड़ा जैसे विद्यालयों में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित किया।
🛣️ कठिन रास्ते, मजबूत इरादे
भट्टीगुड़ा तक पहुंचना आसान नहीं था। बीजापुर से लगभग 85 किमी की दूरी बाइक से तय करते हुए SPC, BEO, BRC, मंडल संयोजक और संकुल समन्वयक गांव पहुंचे। तरेम से होते हुए टीम चिन्नागेल्लूर, छुड़वाई, गुण्डम और कोंडापल्ली जैसे दुर्गम इलाकों से गुजरकर भट्टीगुड़ा पहुंची। रास्ते में नदी-नाले और कीचड़ भरे रास्तों की भी परवाह नहीं की गई।
🔫 कभी माओवादियों का गढ़ था भट्टीगुड़ा
यह इलाका माओवादियों के टॉप लीडरों के लिए सेफ जोन और ट्रेनिंग सेंटर हुआ करता था। सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई और एंटी-नक्सल ऑपरेशन के कारण इस क्षेत्र में अब स्थायित्व दिखने लगा है।
🛡️ सुरक्षा कैम्प और बस सेवा ने बदली तस्वीर
तरेम से पामेड़ को जोड़ने वाली 48 किमी लंबी सड़क परियोजना के चलते इस क्षेत्र में 10 से अधिक सुरक्षा कैम्प खोले गए, जिनमें प्रमुख रूप से चिन्नागेल्लूर, कोंडापल्ली, कवरगट्टा, जीड़पल्ली और पामेड़ शामिल हैं। सुरक्षा बलों की मौजूदगी ने माओवादी प्रभाव को कम किया है और अब विकास कार्यों की रफ्तार तेज हो गई है। तरेम से पामेड़ तक बस सेवा भी शुरू की गई है।