भारत में हर आठवां बच्चा समय से पहले ले रहा जन्म, प्रदूषण और जलवायु बदलाव से बच्चों की सेहत पर आफत!

देश में नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। एक ताजा शोध के मुताबिक, भारत में हर आठवां बच्चा (करीब 13%) समय से पहले पैदा हो रहा है, जबकि हर छठा बच्चा (करीब 18%) कम वजन के साथ जन्म ले रहा है।

यह शोध आईआईटी दिल्ली, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (मुंबई) और ब्रिटेन-आयरलैंड की संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।

किन राज्यों में स्थिति सबसे गंभीर?

  • हिमाचल प्रदेश में 39% और उत्तराखंड में 27% बच्चों का जन्म समय से पहले हो रहा है।

  • पंजाब में 22% नवजात कम वजन के पैदा हो रहे हैं – यह दर देश में सबसे अधिक है।

  • राजस्थान (18.29%) और मध्य प्रदेश (14.84%) में भी समय से पूर्व जन्म की दर चिंताजनक है।

  • एमपी में 21% और राजस्थान में 18% बच्चे कम वजन के साथ जन्म लेते हैं।

  • यूपी और बिहार में भी लगभग 15% बच्चों का जन्म तय समय से पहले हो रहा है।

  • इसके विपरीत, पूर्वोत्तर राज्यों (मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर) में इस स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार देखा गया है।

प्रदूषण बना प्रमुख कारण — PM2.5 बना माँ और शिशु के लिए खतरा

शोध में सामने आया है कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण, विशेषकर PM2.5 (2.5 माइक्रोन से छोटे कण), नवजात स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।

  • हर 10 माइक्रोग्राम/घन मीटर की वृद्धि से

    • कम वजन वाले बच्चों की संभावना 5% बढ़ जाती है।

    • प्रीमैच्योर डिलीवरी की संभावना 12% तक बढ़ जाती है।

उत्तर भारत के राज्यों जैसे बिहार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में PM2.5 का स्तर सबसे ज्यादा पाया गया है।
यह कण मुख्य रूप से कोयला, लकड़ी और अन्य जैव ईंधन के जलने से उत्पन्न होते हैं और शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करते हैं।

बदलते मौसम का भी असर

केवल वायु प्रदूषण ही नहीं, गर्मी की लहरें (heat waves), अत्यधिक वर्षा और अन्य जलवायु परिवर्तन भी गर्भवती महिलाओं और नवजातों के लिए खतरा बढ़ा रहे हैं। ये सभी मिलकर बच्चों के जन्म वजन और समय पर प्रभाव डालते हैं।

चिकित्सा से ज्यादा जरूरी है जलवायु-संवेदनशील स्वास्थ्य नीति

रिसर्च में कहा गया है कि इस संकट से निपटने के लिए केवल चिकित्सा हस्तक्षेप काफी नहीं है।
आवश्यक है कि भारत में:

  • हीट एक्शन प्लान,

  • स्थानीय जल प्रबंधन,

  • और वायु गुणवत्ता नियंत्रण नीतियों को स्वास्थ्य योजनाओं में जोड़ा जाए।

भारत में नवजात स्वास्थ्य पर मंडरा रहा खतरा सिर्फ एक मेडिकल समस्या नहीं, बल्कि पर्यावरण और नीति से जुड़ा एक बहुआयामी संकट है।
अब समय है कि स्वास्थ्य नीति को सिर्फ अस्पतालों तक सीमित न रखकर प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु अनुकूलन को उसमें शामिल किया जाए।

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